अंदर कोई नहीं है
andar koi nahin hai
किसी बात का इतना सरलीकरण ठीक नहीं
कुछ भी करके देखने के लिए
नहीं करना चाहिए कुछ भी
एक छोटे-से क़स्बे से उड़ते-उड़ते एक काग़ज़
सुप्रीम कोर्ट में जाकर गिरता है
न्याय एक भ्रम है
आजकल ज्ञान की आँधी से
भ्रम की टाँटी और मज़बूत होती है
अहंकार उत्पन्न करता है ज्ञान
दो लोगों के बीच प्रेम
सच और झूठ की तरह है
है भी और नहीं भी
क्या करेगा कोई ऐसे समय में
किसका दरवाज़ा खटखटाएगा
लोग घरों में है और बाहर बोर्ड टँगा है
अंदर कोई नहीं हैं।
- रचनाकार : निशांत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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