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आँचल

anchal

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

ना. घ. देशपांडे

और अधिकना. घ. देशपांडे

    गहन अंधकार में छिप कर

    अंतर में गहरे उतर कर

    प्रणय की स्मृति वह

    रखी थी सहेज कर।

    उसी अंधकार पर बहने लगे, अकस्मात्

    जान-बूझ कर फेंके हुए

    उजियाले के प्रपात।

    दहन पर्व होता है,

    शब्दों की आरी, चीरती हुई,

    आर-पार चलती है।

    दृष्टि फँसती है, चाँदनी के जाल में

    जीवन भटकता है,

    टूटे सब स्वप्न लिए थाल में?

    वेदनाओं का पीपल उगता है।

    शाखाएँ फैला कर

    अपनी जड़ें हृदय में जमाता है।

    अब भी थर-थर

    काँपते अधर विह्वल

    हाथों में बचा हाय

    अदृश्य उर्वशी का आँचल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 77)
    • रचनाकार : ना. घ. देशपांडे
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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