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आमचो महाप्रभु मरलो

amcho mahaprabhu marlo

पूनम वासम

पूनम वासम

आमचो महाप्रभु मरलो

पूनम वासम

और अधिकपूनम वासम

    हिड़मा का दादा पारद में मिलने वाले हिस्से से अपनी भूख मिटा लेता था

    हिड़मा की दादी महुआ का

    दारू बना बेच आती थी साप्ताहिक बाज़ार में

    हिड़मा का बाप जंगल साफ़ कर उगा लेता था

    मंडिया, ज्वार

    पेज से मिट जाती थी भूख

    हिड़मा की माँ लंदा के साथ साथ बेच आती थी इमली, तेंदू

    जीने के लिए बहुत सोचने की ज़रूरत नहीं थी उनको

    घोटुल का संगीत दिन भर की मेहनत से कसी हुई देह को

    सुला देता था गहरी नींद

    हिड़मा तोड़ लाता था जंगल से हरा सोना

    हरा सोना जो भर देता घर को

    बुनियादी सुविधाओं से लबालब

    हिड़मा का बेटा गायों के लिए हरी घास उगाता है

    धान की फ़सल को ढेकी में कूट कर पकाता है

    ढूटी कमर में लटकाए मेड़ की मछलियाँ पकड़ लाता है

    हिड़मा की बहू मरका पंडुम मनाते हुए पीसती है

    खट्टी चटनी

    बीज पंडुम मनाते लिंगो से कहती है

    भरा रहे धान से पुटका

    हिड़मा का दादा धरती की उम्र बढ़ाने के नुक्से से वाक़िफ़ था

    हिड़मे की दादी जानती थी आनंदित हुए बिना जीना कितना कठिन है

    हिड़मा का बाप समझता था भूख जितनी हो उतना ही लेना चाहिए धरती से उधार

    हिड़मा की माँ पहचानती थी

    जंगल की नरमी

    जंगल फुट पड़ता था हर मौसम में

    अपनी जंगली बेटियों के खोसे में उतना

    जितने से खटास बनी रहे उनके जीवन में

    हिड़मा को पता है पड़िया खोचने से पहले,

    उसकी प्रेमिका शरमा कर कहेगी :

    'मयँ तुके खुबे मया करेंसे'

    हिड़मा की पत्नी जानती है

    पेड़ की टहनियों पर कितना लचकना है कि टहनियाँ झूल जाए उनकी बाँहों में

    ख़ाली नहीं रखती अपनी नाक को कभी कि

    उनकी फुलगुना की चमक से तुरु मछलियाँ

    मचल उठती हैं

    धरती नहीं माँगती उनसे अपनी दी गई शुद्ध हवा का हिसाब

    धरती निश्चिंत रहती है वहाँ, जहाँ

    पत्तियों के टूट कर गिरने भर से

    छतोड़ी टूट जाने वाले दर्द से गुज़रता है

    हिड़मा का गाँव

    धरती कभी नहीं कहना चाहेगी कि

    आमचो महाप्रभु मरलो

    धरती जानती है

    हिड़मा का बेटा धरती के लिए ऑक्सीजन है

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम वासम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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