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अंबर गोया देश प्रधान

ambar goya desh pardhan

हिमांशु जमदग्नि

हिमांशु जमदग्नि

अंबर गोया देश प्रधान

हिमांशु जमदग्नि

और अधिकहिमांशु जमदग्नि

    अंबर ने बिटौड़े में

    जलते देखे थे प्रेमी

    अंबर गोया देश-प्रधान

    ह्रदय ना पसीजा

    अंबर ना बरसा

    मी हेतु खेत तरसा

    इस बरस भी सावन खाली निकला

    कुर्ते की जेब की तरह

    घर के खाली बासणों की क्लह

    से होकर दूर

    जेब में हाथ डाल देखता रहा

    कोथली की राह

    मुँह में परणा दबाए

    ना गाए गए मल्हार

    थक-हार लगाई गूँगी पींग

    बूढ़े बढ़ की बाँह पर

    अँगुली अँगुठे के बीच कान दबाकर

    गाने लगा “लाख टके का हे माँ मेरी बीजणा

    हे री कोए दरा री पुराणा हो

    एकली म्ह भीजण लाग गी हे माँ मेरी बाग म्हरी”(लख्मीचंद)

    पपीहे घड़वे बजाने लगे

    काग एक-दूजे को पींग झुलाने लगे

    कुत्ते लय में लय मिलाने लगे

    चूहों ने नई-नई तर्ज़ बनाई

    गीदड़ों ने बैंजो पर बजाई

    रोजों ने घेवर खिलाया

    पर अंबर को तरस ना आया

    बिटौड़े जलते रहे

    प्रेमी मरते रहे

    जेब में हाथ कटते रहे

    खेतों के पेट मुसते रहे

    खेती करनो वालों के साथ-साथ

    सारा खेत पीठ पर‌लाद

    समय पर चलते-चलते

    अंबर के पास चला जाऊँगा

    अंबर मैं खाने के लिए

    ख़ानाबदोश हो जाऊँगा

    स्रोत :
    • रचनाकार : हिमांशु जमदग्नि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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