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अमलतास झरता है

amaltas jharta hai

सौम्य मालवीय

सौम्य मालवीय

अमलतास झरता है

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

    बादशाह को

    फूलों से बहुत प्यार था

    क़िले के बुर्ज से

    अपना शहर देखने के बजाय

    फूल वालों की सैर देखा करता था

    ग़ालिब, दाग़, मोमिन, ज़ौक यही सिपहसलार थे

    शायरी का दरबार था

    मौसिक़ी के पेचीदा मसले...

    और एक ज़िंदा क़लाम-सी रियाया थी

    ख़ानदाने मुग़लिया के जाँबाज़ बादशाहों की लंबी फ़ेहरिस्त में

    वह पहला और आख़िरी सूफ़ी था

    क़लम और तावीज़ों के इश्क़ में पागल

    होली में दीवाना

    मुहर्रम में लुटा हुआ

    बादशाह था के दिल्ली के तख़्त पर

    एक मामूली-सा, बूढ़ा, बेज़ार, हसरतों भरा,

    घबराया हुआ, धड़कता दिल रखा था

    बादशाहत उसे बहुत अजीज़ थी

    फिर विरसे में मिली चीज़ों की क़द्र ही कहाँ होती है

    मुझे कलम की नहीं है उसे सल्तनत की नहीं थी!

    सल्तनत तो मौलवियों के मशविरे से चलती थी

    सो मौलवियों की भी थी

    खुदा मौलवियों का ग़ुलाम था

    सो ख़ुदा की भी थी

    और ख़ुदा समय बदल रहा था...

    झूठे ही तख़्त पर बैठ सके

    ये भी किस्मत कहाँ थी

    बवासीर ज़ोरों पर थी

    बदलते समय में तावीज़ बेअसर हो चले थे

    और पीरों की फूँक महज़ आह रह गयी थी

    कंपनी के राज में, क़िले में क़ैद,

    बादशाहत का बोझ उठाए ज़फ़र की सल्तनत

    कब उसके दीवान तक सिमट आई

    उसे पता भी चला

    आजकल कंपनी वाले अदीबों को

    बुकर दिया करते हैं

    तब पेंशन दिया करते थे

    पेंशनयाफ़्ता क़िले में क़ैद बूढ़ा बादशाह

    ग़दर का अग़वा बना

    ग़दर कुचला गया

    बादशाह ज़लावतन हुआ

    रंगून में जान गई

    और अब विस्मृत हो चुका है

    अब बादशाह का किला डेमोक्रेसी का है

    अब बादशाह का शहर ब्यूरोक्रेसी का है

    ये भयानक गर्मियाँ

    मानो उसी कुचले हुए ग़दर का अक्स हैं

    ये चटख़ नीम, गुलमोहर,

    वही ग़ालिब, वही ज़ौक, वही मोमिन हैं

    कंपनी का राज कंपनियों के राज में बदस्तूर जारी है

    और दूर रंगून में

    अपनी क़ब्र में

    'दो गज़ ज़मीं भी मिली कू-ए-यार में'

    कहता हुआ बादशाह करवट बदलता है

    और शहर की सड़कों पर दिन रात

    अमलतास झरता है...

    अमलतास झरता है...

    बादशाह को फूलों से बहुत प्यार था...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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