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आलापिनी

alapini

मैं अमला शंकर की अपूर्णनीय क्षति को नहीं भर सकती

मैं किताब के पन्नों से पंखा झलते हुए बिहुला की कथा सुना सकती हूँ

मैं क़तई नहीं बन सकती जलधर सेन जैसी पत्रकार

मैं सुबह तक धागा कात सकती हूँ और सुना सकती हूँ चंडीदास की प्रचलित कविताएँ

मैं हेमेंद्र बरुआ के चाय बागानों में से एक बागान ख़रीदूँ

इतना धन नहीं मेरे पास

मैं गृहदाह, पल्ली समाज, देना-पावना और चंद्रनाथ पर बहुत कुछ कह सकती हूँ

मैं वेदांतवादिनी नहीं

मैं गार्गी का अवतार नहीं ले सकती

मैं गर्ग संहिता के गोलोका कांड से देवर्षि नारद और मिथिला नरेश के बीच का संवाद सुना सकती हूँ

मुझे त्रिपिटक ग्रंथों का ज्ञान नहीं

मैं मोहिनीअट्टम की भाव-भंगिमाओं के विषय में लगातार चार घंटे बोल सकती हूँ

मैं देश-दुनिया नहीं घूमी

मैं मिस्र, असीरिया, बेबीलोनिया, पर्शिया के इतिहास से जुड़े तथ्य बता सकती हूँ

मैं समय में पीछे जाकर

आम्रपाली और अजातशत्रु को छिपकर देखना चाहती हू्ँ

जासूसों के बारे में सोचती हूँ तो माताहारी के बारे में बहुत कुछ जानना चाहती हूँ

मैं भवभूति के पास बैठूँ दिन के दो पहर

ऐसा चाहती हूँ

मुझे देखते ही सारी गौरेयाँ जाएँ मेरे पास

मेमने सारे खेलने आया करें मेरे घर

बिल्लियाँ कभी भी मेरे कँधों पर आकर बैठ जाएँ

मैं हारिल पक्षी की तरह थाम सकूँ किसी ख़ास को

मैं पैदा होने वाले सभी बच्चों को सिकुड़ती हुई धरती का नक़्शा थमा दूँ

मेरे दुःख की जगह पर कोई महात्मन् नहीं बैठा

वहाँ बैठी है माहवारी के ख़ून में पहली बार लिपटी एक भयभीत लड़की

मेरे जूते सिल्विया के घर तक नहीं जा पाते

मेरी आँखों में मेरे माँ-बाबा बच्चों की तरह उछलकूद करते हैं आए दिन

मेरे साधारण से जीवन की अति साधारण आलापिनी

बज उठती है जब तब

मेरा मनोविनोद करती हुई कहती है मुझसे—

दुखियारी नहीं आलापिनी बनो

स्रोत :
  • रचनाकार : जोशना बैनर्जी आडवानी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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