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अलभ्य प्रेमी

alabhya premi

वंदना गुप्ता

वंदना गुप्ता

अलभ्य प्रेमी

वंदना गुप्ता

और अधिकवंदना गुप्ता

    उसके अंदर बसा है शायद

    कोई पहाड़

    जो उसे स्थिर रखता है

    अपने दायरों में

    मेरे अंदर बहती है एक नदी

    जो उपत्यकाओं, कंदराओं से निकलकर

    बिछा देती है हरियाली का दुकूल

    मैं निकल पड़ती हूँ अपने पूरे उद्दाम में

    अपने इरादों के रास्ते स्वयं बनाती

    बहने लगती हूँ

    किसी पहाड़ की तलहटी के आश्रय में

    और अपने जल में देखती हूँ प्रतिबिंब

    हर पहर उस अलभ्य प्रेमी का।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वंदना गुप्ता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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