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आजकल विषाद लगता

ajkal wishad lagta

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

गौतम जेना

गौतम जेना

आजकल विषाद लगता

गौतम जेना

और अधिकगौतम जेना

    दिनोंदिन बढ़ रहा विषाद

    प्रियजन मुझे याद रहे

    आँखों के आगे उनकी

    प्रतिमूर्ति उतर आती

    हर बात में

    कोई नहीं कोई नहीं

    दिन-ब-दिन विषाद में टूट रहा।

    बुढ़ापा घेर रहा मुझे

    उमर बढ़ती ही जा रही

    क्रमशः पेन्सिल की सीधी रेखा

    बन जाती जटिल

    शिशु-सा आँकता मृत्यु अजीब चित्रों में

    अगले ही क्षण रबर से मिटाता

    दिन-ब-दिन बढ़ रहा विषाद।

    मैं अच्छी तरह जानता

    यह विषाद की आँधी

    घेर रही मेघमय आकाश

    जहाँ मुरझा जाता

    उम्र का धूसर एकाकार

    सूना मन सूनी देह

    हलका लगता परिवेश

    सब अनजान सा लगता

    बात कहाँ, भाव कहाँ, कहाँ पर विचार

    कभी-कभी कोई रंगीन कर देता

    आजकल दिन पर दिन

    विषाद अधिक ही अधिक लगता।

    विषाद लगता

    मुझे विषाद लगता

    किसी को अपना सोचते भी

    डर लगता है।

    वसुधा का हृदय

    किसी मान में

    सूखे पत्ते सा चूर-चूर हो रहा।

    देह देख, मुँह देख

    समझ जाती हर बात वह

    माटी-सी बैठेगी ग्रहण कर।

    आज

    एकाकी एकाकी भाव में

    सोचता

    विषाद लगता मुझे

    आजकल बहुत विषाद लगता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 297)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : गौतम जेना
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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