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ऐसी चली कटार तुम्हारी

aisi chali katar tumhari

कृष्ण मुरारी पहारिया

कृष्ण मुरारी पहारिया

ऐसी चली कटार तुम्हारी

कृष्ण मुरारी पहारिया

और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया

    ऐसी चली कटार तुम्हारी

    घायल हुए स्वप्न सब मेरे

    टूटेंगे फिर भी बन-बनकर

    साँसों पर जड़ता के घेरे

    जीवनत तो गति है अनजानी

    अवरोधों की क्या हस्ती है

    दबी-दबी जो मुस्काती है

    वह शायद असली मस्ती है

    छूट गए सब महल-अटारी

    डाल लिए गीतों, संग फेरे

    तुमने दिए घाव सुधियों के

    समय मुझे देता है मरहम

    अवसादों की गझिन मलिनता

    धो देता छंदों का सरगम

    तुम तो सर्प सरोवर के हो

    मुझे नदी-नाले बहुतेरे

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 58)
    • रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
    • प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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