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ऐसा समय था

aisa samay tha

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

उपेंद्र प्रसाद नायक

और अधिकउपेंद्र प्रसाद नायक

    ऐसा समय था

    वरन वह समय अच्छा था

    समय के पेट से खिलते थे तब

    कल्पना के फूल।

    सूखी नदी के गीत

    डर लगता चिलचिलाती धूप का

    बालू की सेज पर बैठ

    खोलता तुम्हारी स्मृति का पिटारा।

    जन्म मृत्यु की फाँक में

    जीवन की तपती दुपहर

    झर जाता पतझर में

    जल जाता फूलों का शहर।

    सारी ग्लानि गुम जाती

    मिट जाता मान-गुमान

    कैसा मंत्र जानती हो

    कि हँसते ही सब होता लीन।

    तुम्हारी हँसी और रूलाई

    गौरेया के पंख फड़फड़ाने-से

    जीवन वीणा के तार

    कट गए अनेक प्रमाद।

    हारकर फूलों की महक

    यदि यवनिका पड़ती

    हमारे संपर्क पर

    समय बैठ लिखेगा इतिहास

    तेरे-मेरे सत्य वचनों का।

    सच कौन, झूठ कौन

    कहीं लिखा नहीं

    गुप्त राज़ीनामा

    कौन जाने भविष्य

    मेरे मन में नहीं कोई कालिमा।

    हँस रहा बसंत

    निदाघ की साँझ और सुबह

    बीत रहे दिन पर दिन

    कौन जाने और कितने काल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 250)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : उपेंद्र प्रसाद नायक
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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