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आदतें

adten

आदतन

पुरुष जब गुट बनाकर खोलते हैं पत्ते

स्त्रियाँ धूप में फैला देती हैं पापड़, बड़ियाँ और अपनी सर्द हड्डियाँ

मंगल गीत गाते हुए

जमा कर लेती हैं धूप

अँधेरे में गुम आत्माओं के लिए

बुन लेती हैं स्वेटर

धुन लेती हैं रज़ाइयाँ

ठिठुरती संवेदनाओं के लिए

मर्द जब तनाव भगाने को सुलगाता है बीड़ी

भरता है चिलम

औरतें बन जाती हैं खेल के मैदान की गोदी

बच्चे धमाचौकड़ी लगा चुकते हैं जब

पुचकार कर उन्हें

करवा देती हैं होमवर्क

सँवार देती हैं बाल

चोटियाँ गूँथ देती हैं

आदमी ऊँघते हैं जब थककर

स्त्रियाँ सम्हाल लेती हैं उनकी दुकानें

पुरुषों ने फेंकने को निकाला थीं जो नकारा चीज़ें

बेच देती हैं वे उन अपने जैसी लगने वाली आत्मीय चीज़ों को

कुशलता से समझा देती हैं उनकी उपयोगिता ग्राहकों को

आदमी के घर लौटने से पहले

बुहारकर चमका देती हैं पृथ्वी

फूँक मारकर उड़ा देती हैं धूल दूर अंतरिक्ष में

ठिकाने लगा देती हैं बेतरतीबी से बिखरी चीज़ें

अँधेरों को कर देती हैं कोठरियों में बंद

परोस देती हैं गर्म खाना

थका-माँदा पुरुष पटियाला की ख़ुमारी में सो जाता है जब

बचे-खुचे समय में सुलगते सपनों को भर देती हैं इस्त्री में

और पुरुषों की ज़िंदगी में बिछी सलवटों को

मुलायम चमकदार बना देती हैं

सोते-सोते

सुबह के लिए सपनों में सब्ज़ी काटती रहती हैं जब उनकी उँगलियाँ

आँखें जुदा होकर देह से

समानांतर जीवन जी आती हैं

पृथ्वी जैसे लगने वाले किसी और ग्रह पर।

स्रोत :
  • पुस्तक : मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान (पृष्ठ 11)
  • रचनाकार : लीना मल्होत्रा राव
  • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
  • संस्करण : 2012

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