Font by Mehr Nastaliq Web

अधूरी हर चीज़

adhuri har cheez

नवीन सागर

नवीन सागर

अधूरी हर चीज़

नवीन सागर

और अधिकनवीन सागर

    कोई बहुत क़रीब से गुज़रा है

    क़रीब अनंत दूरी के पार से इतने पास है

    कि मैं दूसरी तरफ़ से अनंत के पार से

    बहुत पास गया हूँ

    एक बिंदु में सारी दूरियों का रहना

    सब कुछ का बहुत पास रहना है

    उसी में बहुत बड़े उलझाव की सरलता

    जलरंग का हिलता हुआ अबोध बिंब

    सन्नाटे में घुलता हुआ

    कोई कण बिंदु वग़ैरह नहीं

    एक सपने की बहती हुई विस्मृति है

    यह मैं कौन हूँ

    जो समझ में आने वाले ख़याल को

    बहुत प्यार करता है

    और जो समझ में आने वाले ढंग से

    व्यक्त करता है

    यह कैसी कल्पना जिसमें विचार का भार

    जगह-जगह निरस्त है

    जगह-जगह रह जाती है अधूरी

    हर चीज़

    मेरे और मेरे बीच से दोनों तरफ़ की

    दूरियों का क़रीब गुज़रता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए