Font by Mehr Nastaliq Web

अधुनातन पुरखे

adhunatan purkhe

रामकुमार कृषक

रामकुमार कृषक

अधुनातन पुरखे

रामकुमार कृषक

मिथिला के भू-भाग रुचिर वे

पकी सुनहली हँसती फ़सलें

धान कूटतीं कोकिल कंठी

आम-लीचियाँ ताल-मखाने

ऐसा कुछ भी यहाँ नहीं है

यहाँ नहीं हैं

उड़द-मूँग की गद्दर फलियाँ

और चने के लद्दर बूटे

हरी-भरी बँसवाड़ी के घन-सघन कुंज वे

अमराई-ताड़ों के झुरमुट

टहनी-टहनी से फूले-झूले कदंब-तरु

मौलसिरी के फूल ढेर-से ताज़े-टटके

यहाँ नहीं हैं

यहाँ नहीं है

‘रंग-बिरंगी फूलोंवाली

हरियाली से ढँकी पहाड़ी

देवदार की सरो-चीड़ की

कोसों फैली हुई क़तारें

उन हिममय ऊँचे शिखरों के

अद्भुत और विचित्र नज़ारे’

ऐसा कुछ भी यहाँ नहीं है

फिर ऐसा क्या है

आख़िर इस सादतपुर में

जिसको एक घुमक्कड़ कवि ने रुककर चीन्हा

सौंप दिया जिसके हाथों में डेरा-डंडा

जिसके डील-डौल को अपनी गलबाँही दी

सोचा होगा

सादतपुर है तो दिल्ली मे

लेकिन सादतपुर में दिल्ली अभी नहीं है

अभी शेष हैं कुछ निशान सूखे खेतों के

फ़सलों-खलिहानों की कुछ यादें बाक़ी हैं

बाक़ी हैं चौपालें-चारपाइयाँ-हुक़्क़े

मैना गुर्जरियों के कुछ क़िस्से बाक़ी हैं

बाक़ी है गर्मी का मौसम जाड़ा बाक़ी

बाक़ी महक मटीली पहली बरखावाली

गाँव तरौनी

दरभंगा-पटना से चलकर

लंका जमे चढ़े जा तिब्बत

आख़िर लौटे मैदानों में

भूमि-सुतों के साथ लाठियाँ थामी-भाँजीं

भूमि-सुताओं के साहस से साहस पाया

हरकारे की तरह घूमते कविता बाँची

पत्रहीन नंगे गाछों को देखा-समझा

क्रांति-पुरुष को जा सलाम की लाल चौक पर

राजघाट पर सत्य-अहिंसा को अपंग रिरियाते देखा

शालवनों में गहरे धँसकर आरण्यक छवियों को बाँचा

क्रांति-सैनिकों को चुंबन देने को ललके

चंदू से अपने सपनों को मरम बताया

झूठ नहीं है

बाबा ने दुनिया देखी है

पर मैंने बाबा देखे हैं

देखे हैं घर के आँगन में

सुबह-शाम खटिया पर बैठे

अख़बारों की हैडिंग छूते मोटी-मोटी

दायाँ कान सटाए आकाशवाणी से

पढ़ते कोई पत्र-पत्रिका अथवा पुस्तक

ताज़ा-ताज़ा गीले-गीले छापेवाली

कणिका को तस्वीरें पास बिठा दिखलाते

मुस्कानें दंतुरित देख फिर-फिर मुस्काते

देखें, ठहर देखते-देखते कटहल-अमरूदों को

आम और जामुन को एक साथ बतियाते

देखे, देख रीझते सहजन के फूलों को

गुण बतलाते जवा मिर्च के साथ-साथ

तुलसी बिरवे के

देखे हें कच्चे-पक्के रस्तों पर चलते

डगमग-डगमग छड़ी जमाए

गिन-गिनकर रखते क़दमों को

दरवाज़े-दरवाज़े पुर-परिकंपा करते

राज़ी-ख़ुशी पूछते सबकी सबसे मिलकर

अते-पते की बातें करते बुढ़ियाओं से

बहू-बेटियों के हाथों को ले हाथों युवतर हो जाते

कविताई का...

कई बार मैंने यों देखे हैं बाबा

लौट गए हों पैंसठ-सत्तर साल पिछाड़ी

ठक्कन-वैद्यनाथ को ही फिर से चित करते

लो देखो, वे ठिठक गए हैं चलते-चलते

मैंले पाँवों चप्पल देह पजामा-कुर्ता

जर्सी बुनी हुई विमला के हाथ-माथ से

झुके हुए कंधों पर गमछा कुछ ललछौंहा

ऊपर ऊनी-सूनी टोपा तीरेवाला

बड़े-बड़े हैं कान नुकीली ऊँची नासा

होंठों पर गंभीर शरारत मुस्काती-सी

दाढ़ी पर कैंची सईद की सादतपुरिया

मुट्ठी-भर गर्दन के ऊपर सिर ही सिर है

देख रहे हैं नज़र टिकाए

ब्रेख़्तनुमा घुच्ची आँखों से

अमलतास कचनार औऱ वह धूसर आँगन...

‘रमाकांत के जाने से ये भी उदास हैं

ग्रेट बहुत थे रमाकांत जी...

आशाराम... जानते थे न... देखे होंगे

कामगार थे कैडर में थे

बड़े पुराने कॉमरेड थे असली-खाँटी

अक्सर ही बातें होती थीं घंटों-घंटों

बहुत सहे-समझे थे दिल्ली के नेतागण

अब तो बस यादें बाक़ी हैं...’

दुनिया कहती दुनिया-भर के

मैं कहता सादतपुर के हैं

बाबा अधुनातन पुरखे हैं!

स्रोत :
  • पुस्तक : लौट आएँगी आँखें (पृष्ठ 128)
  • रचनाकार : रामकुमार कृषक
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY