अच्छी बहू सिर पर पल्लू रखती है
आँखें और गर्दन थोड़ी झुकाए रखती है
पाँवों में पाज़ेब, बिछुए,
हाथों में चूड़ियाँ
माँग में हर दिन सिंदूर भरती है
ननद के ताने सास की ज़्यादती सहती है
जेठ के ऊटपटाँग बोलने पर भी चुप रहती है
अपने पर लगे इल्ज़ामों के लिए प्रश्न नहीं करती है
सबको उसी से रहती हैं शिकायतें
पर सबकी उससे पटती है
घर में सबसे ज़्यादा वह खटती है
सबका कहा करती है
आँखों में आँसू भरती है और प्यासी रहती है
मन खाली रहता है फिर भी पेट भरती है
अच्छी बहू
बेटी भले एक भी न जने बेटे दो जनती है
साँझ ढले पति का प्यार पाने के लिए
सजती-सँवरती है
सबके सोने के बाद देर रात बिस्तर पर पड़ती है
सब सोए होते हैं सपनों में खोए होते हैं
मुँह अँधेरे वह उठती है काम करती है
उसकी परवाह कोई नहीं करता
पर थकी होने पर भी सबकी परवाह करती है
अच्छी बहू
कोई नहीं जान पाता
कि इस सबके दरम्यान कितनी बार मरती है
कितनी बार रोती है
और कैसी-कैसी पीड़ाओं में भी
किस-किस तरह हँसती है
अच्छी बहू
- रचनाकार : पद्मजा शर्मा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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