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अब लौटें

ab lauten

उदय प्रकाश

उदय प्रकाश

अब लौटें

उदय प्रकाश

और अधिकउदय प्रकाश

    चौथे पहर दिन की

    अंतिम धूप में

    मैंने बचपन के दिनों का

    वही साँवला नाम

    ज़ोर से लिया।

    छोटी-सी लड़की

    अगले मोड़ पर दूऽर

    बस्ता सँभालती

    अदृश्य हो गई।

    सहजन के पेड़ ने

    ज़ोरों से मंजीरा बजाया।

    एक मैना ने

    टिहरी मारी।

    पका हुआ महुआ

    कहीं टपका

    टप्प से।

    चौथे पहर की धूप

    कितनी पारदर्शी हो जाती है

    और कितनी कम देर

    रुकती है।

    मेरी हथेलियों में

    कुछ देर पहले

    जहाँ द्रवित हो रहा था

    वह साँवला चेहरा

    वहाँ अब

    धूप भी तो नहीं है।

    चलें अपन राम

    अपने घर चलें

    वह लड़की भी तो गई

    कई बरस हुए अपने घर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अबूतर-कबूतर (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : उदय प्रकाश
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

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