वह धरना, वह भीड़, वह आंदोलन
उस धरने में ढेर सारी ध्वनियाँ
ढेर सारे जज़्बात
उसी भीड़ के बीच में दिखती है वह लड़की
और लड़की के हाथ में दिखता है वह पट्टा
जिस पर लिखे हैं सिर्फ़ दो शब्द
‘अब बस’
और आँखें ठहर जाती हैं
आँखें ठहर जाती हैं क्योंकि
अब जो माहौल है हमारे देश का उसमें
ये शब्द ही हैं सबसे ज़्यादा मौज़ूँ
सबसे ज़्यादा मानीख़ेज़
ये दो शब्द जिन्हें
उस लड़की ने अपने हाथ में उठाए पट्टे पर लिखकर
टाँग दिया है इस लोकतंत्र की खूँटी पर
एक ठोस निर्णय की तरह
तब लगता है ये दो शब्द महज़ दो शब्द नहीं हैं
‘बस’ इस विद्रोही स्वर से आगे जाकर
आख़िर उस लड़की को क्यों लिखने पड़े
‘अब बस’ जैसे यंत्रणा के दो शब्द
यह हममें से ऐसा कौन है
जो नहीं बूझता है
और हममें में से कौन ऐसा है
जो नहीं चाहता है लिख देना यहाँ-वहाँ
इन दो शब्दों को
इस दीवार पर, उस दीवार पर
इस सड़क पर, उस सड़क पर और यहाँ तक कि
उन गोल-गोल पायों पर भी
जिस पर कि टिका है हमारा लोकतंत्र
कब लिखे होंगे उस लड़की ने ये दो शब्द
कब सोचे होंगे उस लड़की ने ये दो शब्द
क्या ठीक उस वक़्त
जब वर्षों शासन करने वालों की तरफ़ से एक आदमी अचानक
उठकर कहने लग गया होगा कि
इस देश में बहुत है अराजकता
बहुत है महँगाई
बहुत है ग़रीबी
बहुत हैं यहाँ बह रही हवा में ज़हरीले कण
और फिर अपनी खीसें निपोर कर कहा होगा उसने
कि हम बदल देंगे सब कुछ
बदल देंगे हवा के इस रुख़ को
बादल के टुकड़े को खिसका देगें वहाँ तक
जहाँ नहीं पानी की एक भी बूँद
या फिर धूप के टुकड़े को अपने कोबा में भरकर
रख आएँगे वहाँ जहाँ नमी है बहुत
या फिर तब
जब एक आदमी ने कहा होगा आकर
कि तय क्यों नहीं कर लेते आप अपनी अस्मिता
यह देश तुम्हारा था और तुम्हारा ही रहेगा
यह धरती, यह आसमान
यह नदी, यह रेगिस्तान सब तुम्हारा है
तुम्हारे हिस्से का ही है यह बादल
या फिर तब जब कहा होगा उसने कि
क्यों ढूँढ़ते हो तुम उन हत्यारों को
जिनका कोई नाम नहीं है, रूप नहीं है
जिनका कोई आकार नहीं है
क्यों चाहते हो कि हर हत्या को माना ही जाए एक जघन्य हत्या
क्यों चाहते हो कि हर हत्यारा सुन ले अपने ज़मीर की आवाज़
और कर ही ले अपना ज़ुर्म क़बूल
यहाँ बोले जा रहे हर शब्द पर अधिकार है तुम्हारा
यहाँ बोले जा रहे हर शब्द का अर्थ है तुम्हारा
यहाँ कोई शब्दकोश नहीं है बस वह है
जो तुम चाहते हो
यह कितना अच्छा है कि उस लड़की ने
नहीं माना कोई आश्वासन
और लिख दिए ये दो शब्द सबसे बड़े प्रतिरोध की तरह
ज़रूरी यह है कि हम इस प्रतिरोध को लेते रहें हमेशा
एक ठोस निर्णय की तरह
हमेशा, हरदम, हर पल
क्योंकि जब तक हम ज़िंदा रखे रहेंगे
इन दो शब्दों को अपने भीतर
तब तक हमारे भीतर भी जलती रहेगी वह आग
जो इन दो शब्दों को लिखते वक़्त रही होगी
उस लड़की के दिल में
या वह आग जो है इन दो शब्दों के ठीक-ठीक भाष्य में।
- रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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