आते रहना प्रेम
aate rahna prem
प्रेम को आने से कभी रोका नहीं
इसलिए वह आता गया कई-कई रूपों में
कभी थाती बन दबा रहा डायरी में
कभी अग्नि के सात फेरों में बँधा
प्रेम की एक वह भी अवस्था थी
कि सफ़र में अनजाने लोग टकराते रहे
और दूर तकल निगाहें देखती रहीं विदा होने तक
प्रेम ने ऐसे भी दी दस्तक
कि उम्र का फ़ासलों के पार
एक कठिन परिभाषा गढ़ गया
जिन अनुबंधों को कभी साझा नहीं किया
वह भी प्रेम की इबारतें रचता रहा
प्रेम सदैव जीवन में रहा
प्रेम के तमाम पर्यावाची अपने समानार्थों में
रचते रहे जीवन
सुनो प्रेम
यूँ ही आते रहना।
- पुस्तक : पूर्वग्रह 166-67 (पृष्ठ 189)
- संपादक : प्रेमशंकर शुक्ल
- रचनाकार : नताशा
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