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आओ, जल-भरे बरतन में

aao, jal bhare bartan mein

रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय

आओ, जल-भरे बरतन में

रघुवीर सहाय

और अधिकरघुवीर सहाय

    आओ, जल-भरे बरतन में झाँकें

    साँस से पानी में डोल उठेंगी दोनों छायाएँ

    चौंककर हम अलग-अलग हो जाएँगे

    जैसे अब, तब भी मिलाएँगे आँखें, आओ

    पैठी हुई शीतल जल में छाया साथ-साथ भीगे

    झुके हुए ऊपर दिल की धड़कन-सी काँपे

    करती हुई इंगित कभी हाँ के, कभी ना के

    आओ जल-भरे बरतन में झाँके

    स्रोत :
    • पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ 61)
    • संपादक : कृष्ण कुमार
    • रचनाकार : रघुवीर सहाय
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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