Font by Mehr Nastaliq Web

आग की पहचान

aag ki pahchan

पारस अरोड़ा

पारस अरोड़ा

आग की पहचान

पारस अरोड़ा

और अधिकपारस अरोड़ा

    आग सिर्फ़ वही तो नहीं होती

    जो नज़र आती है / दिपदिपाती हुई अग्नि

    जो दिखती नहीं / लेकिन रेत पर बिछ जाती है

    धर दें अनजाने तो सिक जाते हैं पाँव।

    आग के उपयोग से पहले / उसकी पहचान ज़रूरी है

    कार्य-सिद्धि के लिए वह / पूरी है कि अधूरी

    यह जानना बेहद ज़रूरी

    समय आने पर आग / उपार्जित करनी पड़ती है

    मिले तो यहाँ-वहाँ से लानी पड़ती है।

    बर्फ़ के पहाड़ के नीचे / दबकर मरने से पहले

    आग अर्जित कर / बर्फ़ को पिघलाना पड़ता है।

    जहाँ / नज़र आती है आँख में ललाई

    नस-नस चेहरे पर तनी हुई

    बँधी हुई मुट्ठियाँ / फनफनाते नथुने

    और श्वास-गति बढ़ी हुई—

    समझ लीजिए, उस जगह आग सुलग चुकी है।

    कहते हैं कि राग से आग उपजती थी

    शब्दों से प्रकट होती / अग्नि को देखा है

    झेली है / बरसों से पोषित आग

    दबी हुई यह आग / बाहर लानी है तुम्हें

    जहाँ आग लग गई / बुझानी है तुम्हें

    बुझ गई तो सोच लो / फिर से लगानी है तुम्हें

    जान लो कि आग की पहचान पानी है तुम्हें

    कितनी अजीब बात है

    लोग हथेली पर हीरे की तरह आग धर

    उसका सौदा कर लेते हैं

    आग को / लाग की तरह काम लेकर

    अपना समय काटने के लिए

    पीढ़ियों की गर्मी को गिरवी धर देते हैं।

    मरते खपते रहने के बावजूद

    मिले तुम्हें अगर

    कहीं कोई चिनगारी दबी हुई—

    कैसे वह पैदा होती है?

    सोच-समझकर वह समझ

    समझानी है तुम्हें

    पर सबसे पहले / आग से तुम्हें

    अपनी परख पहचान ज़रूर पा जानी है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक भारतीय कविता संचयन राजस्थानी (1950-2010) (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : पारस अरोड़ा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए