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आग और अन्न

aag aur ann

कौशल किशोर

कौशल किशोर

आग और अन्न

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    चूल्हा जल रहा है

    उसके पास बैठी है औरत

    चूल्हे में आग है

    आग पर चढ़ा है पतीला

    पतीले में पक रहा है अन्न

    औरत पतीले का ढक्कन हटाती है

    संभालती है कलछुल अपने हाथों में

    देखती है आग और अन्न का मिलन

    कितना अदभुत है यह प्रेम

    कि जैसे-जैसे बढ़ती है आँच

    वैसे-वैसे फैलती है

    पकते हुए अन्न की ख़ुशबू

    मह-मह कर उठता है घर

    वह देखती है पतीले के अंदर

    आग का असर

    उबलते हुए पानी का उठान

    फुदकते हुए दाने

    अन्न का बदलता हुआ रंग-रूप

    पतीले के अंदर बजता उसका संगीत

    अन्न का आग से

    जब होता है ऐसा मिलन

    सृजित होता है

    जीवन का अजेय संगीत

    भूख जैसा हिंस्र पशु भी

    इसमें हो जाता है नख दंतविहिन।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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