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आदि कर्म सौंदर्य

aadi karm saundarya

गुरचरन रामपुरी

गुरचरन रामपुरी

आदि कर्म सौंदर्य

गुरचरन रामपुरी

और अधिकगुरचरन रामपुरी

    जब मिली मुझको लगा था

    मैं उसकी खोज में था

    मेरी निरर्थक भटकनों को मिल गया ज्यों अर्थ

    लक्ष्य पा लिया मैंने

    देखके मुझको डरी हैरान-सी कुछ मुस्कुरा दी

    सौंदर्य सज्जन के ढक रही केंद्र लज्जावती-सी

    आँख मेरी साकार रूप पर टिकी मस्त अलसाई

    तन मन में अद्भुत हलचल-सी

    होश नहीं थी कोई

    वाणी दोनों समझ पाए

    बात हुई फिर भी

    हाथ मिले फिर ओंठ जुड़े

    फिर छाती ने छाती गरमाई

    मैं उसके भीतर, वह मेरे अंदर

    रोम-रोम में समा चुकी

    परमानंद आकाश में ऊपर बिजली चमकी

    चकाचौंध फैलाई

    जंगल में ज्यों मंगल व्यापक

    नैनों में स्वर्गीय आनंद

    फूलों पर तितलियाँ झूमतीं

    पक्षी भरें उड़ान खेलते

    जीवन मिलन, जन्म का उत्सव

    रंग, मोह, ऊष्मा नैसर्गिक, सज्जनधर्मी आसपास

    चहुँओर आनंद सुवास नूर की आभा

    तन गुलाब-सा, कोयल फिसले

    चमत्कार शाश्वत ज्यों मैं महसूस कर रहा

    फिर आए पंडित, पैग़ंबर, ईश्वरीय मौलाना सारे

    मुझको मेरा भूत-भविष्य बताने वाले

    ऊलजलूल कथाएँ कहते अक़ल के अंधे

    बिना सहमति मुझको कहते—

    नागदेव शैतान ने मुझको बहकाया है

    विष-बेल के संग लिपटाया

    परमपिता को मेरा कर्म मूल भाया

    स्वर्गलोक से मुझे तभी धरती पर पटका।

    सहवासी मैं कहता हूँ, रूपवती को

    मुझे किसी वकालत की कोई ज़रूरत

    मुझसे कुछ भी स्वर्ग ने छीना, जन्नत आगे-पीछे मेरे

    जन्नत मेरी छाती संग है

    सर्जन के सुखदायक से इस आदि-कर्म को

    पाप भला मैं कैसे कह दूँ?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 156)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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