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आदत बन गई

aadat ban gayi

जुवि शर्मा

जुवि शर्मा

आदत बन गई

जुवि शर्मा

और अधिकजुवि शर्मा

    और चाहिए?

    बस?

    पेट भर गया?

    उसके बाद दुबारा माँगा नहीं गया

    आधे पेट हाथ धोना

    जठर अग्नि को और प्रबल कर देता है

    ख़ालीपन की जगह अनल का सान्निध्य

    जीवन का आरंभ था

    यथा आरंभ तथा अंत

    अंततः

    आदत बन गई

    आवश्यकताएँ

    कब मूक बन गईं

    प्रतिरोध करने का गुण

    सिंक में रोज़ जूठन के साथ बह जाता

    कैसा दुर्लभ जीवन था

    जब बरसात में छतरी और

    ठंड में स्वेटर नहीं थी

    जीवन

    अब शायद अंतिम सोपान पर है

    क्या कोई आवश्यकता ही नहीं रही?

    जहाँ खड़ी हूँ

    बस!

    कुछ नहीं चाहिए...

    स्रोत :
    • रचनाकार : जुवि शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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