बचपन में
वर्णमाला सीखने की
ऐसी लगन थी उसके भीतर
कि वह अपनी उँगली को
क़लम बना लेती
और ज़मीन को काग़ज़
इतनी अलंकार प्रिय थी
कि बबूल के फलों को मोड़ कर
कलाई में कंगन की तरह डाल लेती
महुए के फूलों को गूँथ कर मटरमाला पहनती
भूने चने को छील कर
सोने के लॉकेट की तरह
पहनने के बारे में सोचती
वह पहली साँस में लहर
दूसरी में भँवर
और तीसरी में आवर्त बन जाती।
लोग उसे चावल की तरह टोना चाहते
लेकिन वह धान के आवरण की तरह अनुभूति कराती
जो उसे कमल का फूल समझ कर पकड़ना चाहता
मंगुर मछली की तरह डंक मारकर उसके हाथों से छूट जाती
कैमरों के सामने अक्सर अपना पंजा फैला देती
बोलते-बोलते चुप हो जाती
और चुप रहते-रहते बोलने लगती
मुलतानी मिट्टी और हल्दी
पत्थर के नीचे पिस जाती थीं
उसे कांति देने के लिए
मुस्कान ने उसे अपने होंठ दिए थे
भिंडियों ने अँगुलिपना
तीसी के फूलों ने नीली-नीली बत्तियाँ
प्रकृति ने उसे अपनी अल्पवयस्क सौतन समझ लिया था
जब वह पहली बार ऋतुमती हुई थी
तो जैसे क्षितिज की कोख में
सूर्य की भ्रूण हत्या हो गई हो
बड़ा भाई चाहता था कि वह
उसके आगे से भुंइयालोट हवा की तरह
आगे निकल जाए
जबकि वह मातृविहीना
एकांत में
रोती हुई दो साल की छोटी बहन के मुँह में
खोल कर अपनी छाती डाल देती
छोटी बहन रोती
तो वह अपने आँसुओं से
चुपचाप जुगलबंदी करती
एकांत रुदन
और सामूहिक हँसी में
अडिग विश्वास था उसका
अचानक अपना साँचा तोड़ दिया था उसने
जैसे रात भर बाद की लौकी
या हो गई हो 25 दिसंबर
अथवा एकाएक बढ़ गया हो बल्ब का बोल्टेज
लेकिन भ्रमित नहीं की थी इतना
कि पूर्णिमा के ज्ञान के लिए
आस-पास के लोगों को देखना पड़े पंचांग
या नक्षत्रशालाओं को उठानी पड़ें अपनी दूरबीनें
कैरियर में बस्ता दबाकर
अपनी खड़ी साइकिल देखती
तो विश्राम और तेज़ी में एक प्रतियोगिता छिड़ जाती
साइकिल की गद्दी पर हाथ फेरती
तो साइकिल सूर्याश्व, बेदुला या चेतक जैसी सिहर उठती
बारहवें किलोमीटर पर पहुँच कर
ग्यारहवें किलोमीटर के शिलालेख तक पहुँचे
समय की प्रतीक्षा कर रही है वह
हालाँकि बहुत गत्यात्मकता उसे पसंद नहीं
वरना इतनी गति है उसमें
कि चलेगी तो पता नहीं कहाँ पहुँच जाएगी
फ़िलहाल आंडाल, मीरा, लक्ष्मीबाई, ऊदा देवी
महादेवी, इंदिरा, कल्पना चावला, मायावती इत्यादि
बनने के पहले
वह साइकिल से स्कूल पहुँचना चाहती है
आकाश की बिजलियों!
गिरना तो किसी ठूँठ पर गिरना
भारी वाहन के चालको!
ट्रक दौड़ाते हुए करुणा से भरे रहना
उड़ने वाली चिड़ियो!
उसे छाया करते हुए उड़ना
शुभकामना पत्रकारो!
कि रिज़ल्ट आने पर
मुखपृष्ठ पर तुम उसका फ़ोटो छाप सको
हे साइकिल की चेन! उतरना तो बीच में मत उतरना...!
- रचनाकार : अष्टभुजा शुक्ल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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