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प्यार के बहुत चेहरे हैं

pyar ke bahut chehre hain

नवीन सागर

नवीन सागर

प्यार के बहुत चेहरे हैं

नवीन सागर

मैं उसे प्यार करता

यदि वह

ख़ुद वह होती

मैं अपना हृदय खोल देता

यदि वह

अपने भीतर खुल जाती

मैं उसे छूता

यदि वह देह होती

और मेरे हाथ होते मेरे भाव!

मैं उसे प्यार करता

यदि मैं पत्ता या हवा होता

या मैं ख़ुद को नहीं जानता

मैं जब डूब रहा था

वह उभर रही थी

जिस पल उसकी झलक दिखी

मैं कभी-कभी डूब रहा हूँ

वह अभी-अभी अपने भीतर उभर रही है

मैं उसे प्यार करता

यदि वह जानती

मैं ख़ामोशी की लय में अकेला उसे प्यार करता हूँ

प्यार के बहुत चेहरे हैं।

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अनुभव

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स्रोत :
  • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 37)
  • रचनाकार : नवीन सागर
  • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
  • संस्करण : 2001

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