प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
राम और लक्ष्मण का अगला पड़ाव ऋष्यमूक पर्वत था। सुग्रीव वहीं रहते थे। कबंध और शबरी की बात दोनों भाइयों को याद थी। दोनों ने सुग्रीव से मिलने की सलाह दी थी। कहा था कि वे सीता की ख़ोज में सहायक होंगे। दोनों राजकुमार शीघ्रता से वहाँ पहुँचना चाहते थे।
सुग्रीव का मूल निवास ऋष्यमूक पर्वत नहीं था। किष्किंधा था। ऋष्यमूक में वह निर्वासन में अपना समय बिता रहे थे। सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। बड़े भाई का नाम बाली था। पिता के न रहने पर ज्येष्ठ पुत्र बाली राजा बना। पहले दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। राजकाज में किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ। फिर झगड़ा हो गया। इतना गंभीर कि बाली सुग्रीव को मार डालने पर उतर आया। जान बचाने के लिए सुग्रीव को ऋष्यमूक आना पड़ा।
ऋष्यमूक आकर भी सुग्रीव का डर कम नहीं हुआ था। वह चौकस रहता था। विश्वासपात्र वानर सेना निरंतर पहरे पर रहती थी। सुग्रीव स्वयं भी पहरा देता था। इस डर से कि कहीं बाली के गुप्तचर सैनिक वहाँ न पहुँच जाएँ। एक दिन सुग्रीव पहाड़ी पर खड़ा था। उसने दो युवकों को उधर आते देखा। “ये दोनों अवश्य बाली के गुप्तचर होंगे। मुझे मारने आ रहे होंगे।” सुग्रीव ने तत्काल अपने साथियों को बुलाया।
“हमें ऋष्यमूक छोड़ देना चाहिए। यह स्थान अब सुरक्षित नहीं है। बाली यहाँ भी आ धमका है,” सुग्रीव ने अपने साथियों से कहा। “मैंने दो युवकों को इधर आते देखा है। उनके हाथों में धनुष हैं।”
सुग्रीव घबराया हुआ था। पर उसके प्रमुख साथी हनुमान इससे सहमत नहीं थे। “मैं जाकर पता लगाता हूँ कि वे कौन हैं। बाली की सेना में ऐसे सैनिक नहीं हैं.” हनुमान ने भी दोनों युवकों को देख लिया था। हनुमान पर सुग्रीव को भरोसा था। उसने बात मान ली।
राम और लक्ष्मण पहाड़ी पर चढ़ते-चढ़ते थक गए थे। वे पहाड़ी सरोवर के पास रुके। थकान मिटाने। मुँह हाथ धोने। तभी भेस बदलकर हनुमान वहाँ पहुँच गए। शिष्टता से प्रणाम किया। पूछा, “आप दोनों कौन हैं? वन में क्यों भटक रहे हैं? आपका भेस मुनियों जैसा है लेकिन चेहरे से राजकुमार लगते हैं।”
“हम सुग्रीव से मिलने जा रहे हैं। हमें उनकी सहायता की आवश्यकता है। क्या आप उन्हें जानते हैं?” राम ने विनम्रता से पूछा। प्रारंभिक बातचीत में ही हनुमान स्थिति भाँप गए। वे अपने मूल रूप में आ गए। प्रणाम करते हुए बोले, “मैं हनुमान हूँ। सुग्रीव का सेवक। उन्होंने आपका परिचय जानने के लिए यहाँ भेजा था।”
लक्ष्मण ने उन्हें अपना परिचय दिया। वन में आने का कारण बताया। यह भी बताया कि वे कबंध और शबरी की सलाह पर आए हैं। सुग्रीव से मिलने। उनसे सहायता माँगने।
हनुमान के चेहरे पर हलकी-सी मुसकराहट आ गई। कोई उससे सहायता माँगने आया है, जिसे स्वयं सहायता चाहिए। हनुमान समझ गए। राम और सुग्रीव की स्थिति एक जैसी है। दोनों को एक-दूसरे की सहायता चाहिए। वे मित्र हो सकते हैं। एक अयोध्या से निर्वासित है, दूसरा किष्किंधा से। एक की पत्नी को रावण उठा ले गया है। दूसरे की पत्नी उसके भाई ने छीन ली है। दोनों के पिता नहीं हैं।
हनुमान ने राम और लक्ष्मण को कंधे पर बैठाया। कुछ ही पल में वे ऋष्यमूक के शिखर पर पहुँच गए। हनुमान ने दोनों को सुग्रीव से मिलाया। दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन लिया। सुग्रीव ने कहा , “आज से हमारे सुख-दु:ख साझा हैं।”
राम ने सुग्रीव को सीता-हरण के संबंध में बताया तो सुग्रीव अचानक उठ खड़े हुए। उन्हें कुछ याद आया। बोले, “वानरों ने मुझे एक स्त्री के हरण की बात बताई थी। वह निश्चित रूप से सीता ही रही होंगी। रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से गया था।”
राम और लक्ष्मण ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे। सुग्रीव बोलते रहे, “सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने का यत्ल कर रही थीं। वानरों को देखकर उन्होंने अपने कुछ आभूषण नीचे फेंक दिए थे।” गहनों की एक पोटली राम के सामने रखते हुए उन्होंने कहा, “देखिए क्या ये गहने सीता के हैं?”
राम ने आभूषण तुरंत पहचान लिए। कुछ गहने लक्ष्मण ने भी पहचाने। गहने देखकर राम शोक सागर में डूब गए। उनके मुँह से निकला, “धिक्कार है मुझे, हे सीते! मैं संकट में तुम्हारी रक्षा नहीं कर सका। मेरा पौरुष, बल, पराक्रम, ज्ञान तुम्हारे काम नहीं आया।”
सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना दी। “सीता अवश्य मिल जाएँगी। मैं हर प्रकार से आपकी सहायता करूँगा, मित्र। रावण का सर्वनाश निश्चित है।”
राम के बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई। “बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया है। मेरी स्त्री छीन ली। मेरा वध करने की चेष्टा कर रहा है। संकट के समय हनुमान, नल और नील ने मेरा साथ दिया। मुझे कभी नहीं छोड़ा।” उसने राम से सहायता माँगी। राम बोले, “चिंता मत करो मित्र। तुम्हें अपना राज्य भी मिलेगा और स्त्री भी।”
राम देखने में सुकुमार थे। उन्हें देखकर उनकी शक्ति का पता नहीं चलता था। सुग्रीव को राम के आश्वासन पर भरोसा नहीं हुआ। “बाली महाबलशाली है। उसे हराना इतना आसान नहीं है। वह शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है।”
राम ने कोई उत्तर नहीं दिया। धनुष उठाया और तीर चला दिया। शाल के सातों विशाल वृक्ष एक ही बाण से कटकर गिर पड़े। इस शक्ति प्रदर्शन पर सुग्रीव ने हाथ जोड़ लिए। राम ने कहा, “मित्र! अब विलंब कैसा? बाली को युद्ध के लिए ललकारो। किष्किंधा की राजगद्दी का निर्णय उसी युद्ध में हो जाएगा।”
सुग्रीव चिंतित हो गए। युद्ध में बाली को हराना असंभव था। राम बोले, “चिंता मत करो मित्र। मैं पेड़ की ओट से युद्ध देखूँगा। जब तुम पर संकट आएगा, तुम्हारी सहायता करूँगा। बाली की मृत्यु मेरे ही बाण से होगी। वह मारा जाएगा।”
योजना बनाकर सब किष्किंधा पहुँच गए। सुग्रीव आगे था। राम, लक्ष्मण और हनुमान छिप गए थे। ‘मेरे पीछे राम की शक्ति है,’ सोचते हुए उसने बाली को ललकारा। बाली के क्रोध की सीमा न रही। वह गरजता हुआ निकला। “आज शिकार स्वयं मेरे मुँह तक आया है। मैं तुझे नहीं छोडूँगा।”
भीषण मल्ल युद्ध हुआ। दोनों एक-दूसरे से गुँथ गए। युद्ध में बाली भारी पड़ रहा था। लगता था सुग्रीव का अंत निश्चित है। राम पेड़ के पीछे खड़े थे। धनुष हाथ में था। पर उन्होंने तीर नहीं चलाया। सुग्रीव वहाँ से किसी तरह जान बचाकर भागा। सीधा ऋष्यमूक पर्वत आकर रुका। राम, लक्ष्मण और हनुमान भी लौट आए।
सुग्रीव राम पर कुपित था। “यह धोखा है। आपने मेरे साथ धोखा किया। समय पर बाण नहीं चलाया। मैं नहीं भागता तो आज वह मुझे मार डालता।” राम की कठिनाई दूसरी थी। वे दुविधा में थे। उन्होंने सुग्रीव को समझाया, “तुम दोनों भाइयों के चेहरे मिलते-जुलते हैं। दूर से दोनों एक जैसे लगते हो। मैं बाली को पहचान नहीं पाया। बिना पहचाने बाण चलाता तो वह तुम्हें भी लग सकता था। मैं इस चूक के लिए तैयार नहीं था। मैं अपने मित्र को खोना नहीं चाहता था।”
लक्ष्मण ने समझा-बुझाकर सुग्रीव को तैयार किया। एक और युद्ध के लिए। राम ने कहा, “जाओ मित्र! इस बार बाली को पहचानने में चूक नहीं होगी। इस बार उसका अंत निश्चित है।” सुग्रीव डरा हुआ था। घबराहट थी। पर राम के कहने पर तैयार हो गया।
किष्किंधा पहुँचकर उसने बाली को चुनौती दी। ललकारा। बाली को सुग्रीव का यह साहस समझ में नहीं आया। वह अंत:पुर में था। अपनी पत्नी रानी तारा के साथ। बाली जाने लगा तो तारा ने उसे समझाने का प्रयास किया। जाने से मना किया। बाली ने उसकी बात नहीं मानी। पैर पटकता बाहर आया। क्रोध से उबल रहा था।
बाली ने हाथ हवा में उठाया। मुट्ठी भिंची हुई थी। वह एक घूंसे से सुग्रीव का काम तमाम कर देता। तभी राम का बाण उसकी छाती में लगा। वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। बाली के गिरने पर राम, लक्ष्मण और हनुमान पेड़ों की ओट से बाहर निकल आए।
आनन-फानन में राज्याभिषेक की तैयारियाँ की गईं। सुग्रीव को राजगद्दी मिली। राम की सलाह पर बाली के पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया गया। राम ने सुग्रीव के लिए संबोधन बदल दिया। राजगद्दी पर बैठने के बाद उन्हें ‘मित्र’ नहीं कहा। ‘वानरराज’ कहकर संबोधित किया। सुग्रीव का मन था कि राम कुछ समय वहीं रहें। उनके साथ। राम ने मना कर दिया। कहा, “यह पिता की आज्ञा के विरुद्ध होगा। उन्होंने मुझे वनवास दिया है। मैं वन में ही रहूँगा।”
राम किष्किंधा से लौट आए। वर्षा ऋतु के कारण आगे जाना कठिन था। लंकारोहण कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। इस अवधि में वे प्रश्रवण पहाड़ पर रहे।
वर्षा ऋतु बीत गई। राम प्रतीक्षा कर रहे थे। सुग्रीव की वानरसेना की। सीता की ख़ोज के लिए। सुग्रीव ने राजतिलक के दिन राम को इसका आश्वासन दिया था। लेकिन वह अपना वचन भूल गए।
राग-रंग में उलझ गए। राम चिंतित थे। रुके। तुरंत निकल पड़े। लक्ष्मण के पीछे-पीछे। दु:खी भी।
हनुमान को सुग्रीव का वचन याद था। राजतिलक के दिन वे वहीं थे। उन्होंने सुग्रीव को याद दिलाया। सुग्रीव ने वानरसेना एकत्र करने का आदेश दिया। यह काम सेनापति नल को सौंपा गया। पंद्रह दिन और बीत गए। लेकिन सेना राम के पास नहीं पहुँची।
राम सुग्रीव के इस व्यवहार से क्षुब्ध थे। क्रोध में उन्होंने सुग्रीव के विनाश तक की बात कही। राम को चिंतित देख लक्ष्मण से न रहा गया। उन्होंने धनुष उठाया तो राम ने उन्हें रोक दिया। कहा, “सुग्रीव को बस समझाना है। वह हमारा मित्र है।” लक्ष्मण किष्किंधा चले गए। सुग्रीव को समझाने। वहाँ पहुँचकर उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। डोरी खींचकर छोड़ी। उसकी टंकार से सुग्रीव काँप गया।
धनुष की टंकार सुनते ही उसे राम को दिया वचन पुन: याद आ गया। तारा ने सलाह दी कि वे तत्काल जाकर राम से मिलें। क्षमा याचना करें। सुग्रीव ने ऐसा ही किया। राम के पास जाने से पूर्व सुग्रीव ने हनुमान को आवश्यक निर्देश दिए। वानर सेना एकत्र करने का आदेश। इस बार सुग्रीव सेना एकत्र होने तक नहीं राम के सामने जाकर भयभीत वानरराज ने उनसे क्षमा माँगी। अपनी चूक के लिए। राम ने उन्हें उठाकर गले लगा लिया। राम और सुग्रीव बात कर ही रहे थे कि उछलकूद करती वानर टोलियाँ वहाँ आ पहुँचीं। हनुमान के साथ लाखों वानर थे। जामवंत के पीछे भालुओं की सेना।
इसके बाद लंकारोहण की योजना बनी। वानरों को चार टोलियों में बाँटा गया। अंगद को दक्षिण जाने वाले अग्रिम दल का नेता बनाया गया। उस दल में हनुमान, नल और नील भी थे। राम की यही इच्छा थी। उन्होंने कहा, “वानरों की सेना भेजने से पहले चतुर और बुद्धिमान दूतों को लंका भेजा जाए। यही उचित है।”
राम और सुग्रीव की जय-जयकार करते वानर अपनी निर्धारित दिशाओं की ओर चल पड़े। दक्षिण जाने वाले दल को राम ने रोक लिया। उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाया। अपनी उँगली से अँगूठी उतारकर उन्हें दे दी। अँगूठी पर राम का चिह्न था। उन्होंने कहा, “जब सीता से भेंट हो तो यह अँगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी। समझ जाएँगी तुम्हें मैंने भेजा है। तुम मेरे दूत हो।”
दक्षिण की टोली किष्किंधा से चली। अंगद और हनुमान आगे-आगे चल रहे थे। चलते-चलते वे ऐसे स्थान पर पहुँच गए, जिसके आगे भूमि नहीं थी। केवल जल था। विशाल समुद्र। उसकी गहराई अथाह थी। लहरों की गरज कैंपा देती थी। समुद्र को देखकर सबका साहस जवाब दे गया। वानर थक-हारकर वहीं बैठ गए।
वानर राम के बारे में चर्चा करने लगे। अंगद ने कहा, “राम की सेवा में प्राण भी चले जाएँ तो दुख नहीं होगा। जटायु ने अपनी जान दे दी। हम भी पीछे नहीं हटेंगे।”
तभी एक विशाल गिद्ध पहाड़ी के पीछे से निकला। वह जटायु का भाई था। संपाति। उसने कहा, “सीता लंका में हैं। मैं जानता हूँ। रावण उन्हें लेकर गया है। आप लोगों को यह समुद्र पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का बस यही एक रास्ता है।”
सीता की सूचना मिलने से प्रसन्न हुआ वानर दल फिर निराश हो गया। समुद्र सामने था। विकराल था। उसे कौन पार करेगा? कैसे करेगा? अंगद उदास हो गए। लक्ष्य सामने था। पपर विकट था। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। बूढ़ा संपाति उनकी सहायता कर सकता था। पर इस आयु में इतनी लंबी उड़ान संभव नहीं थी।
वानर दल असमंजस में पड़ गया। अंगद ने पहले ही कह दिया था कि काम पूरा किए बिना कोई किष्किंधा वापस नहीं जाएगा। वे न आगे जा सकते थे, न पीछे। वे एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। इस दल में सबसे बुद्धिमान जामवंत थे। सब उनके पास गए। उनके पास भी इस कठिन प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था।
तभी जामवंत की दृष्टि हनुमान पर पड़ी। वे सबसे दूर बैठे थे। चुपचाप। जामवंत जानते थे कि यह काम हनुमान कर सकते हैं। वे पवन पुत्र हैं। उनकी शक्ति अपार है। लेकिन उन्हें स्वयं इसका अनुमान नहीं है। उनकी सोई हुई शक्ति जामवंत ने जगाई। कहा, “हनुमान! आपको जाना होगा। यह कार्य केवल आप कर सकते हैं।” सबकी आँखें उन्हीं पर टिक गईं।
raam aur lakshman ka agla paDav rishymuk parvat tha. sugriv vahin rahte the. kabandh aur shabri ki baat donon bhaiyon ko yaad thi. donon ne sugriv se milne ki salah di thi. kaha tha ki ve sita ki khoj mein sahayak honge. donon rajakumar shighrata se vahan pahunchna chahte the.
sugriv ka mool nivas rishymuk parvat nahin tha. kishkindha tha. rishymuk mein wo nirvasan mein apna samay bita rahe the. sugriv kishkindha ke vanarraj ke chhote putr the. baDe bhai ka naam bali tha. pita ke na rahne par jyeshth putr bali raja bana. pahle donon bhaiyon mein bahut prem tha. rajakaj mein kisi baat ko lekar manmutav hua. phir jhagDa ho gaya. itna gambhir ki bali sugriv ko maar Dalne par utar aaya. jaan bachane ke liye sugriv ko rishymuk aana paDa.
rishymuk aakar bhi sugriv ka Dar kam nahin hua tha. wo chaukas rahta tha. vishvasapatr vanar sena nirantar pahre par rahti thi. sugriv svayan bhi pahra deta tha. is Dar se ki kahin bali ke guptachar sainik vahan na pahunch jayen. ek din sugriv pahaDi par khaDa tha. usne do yuvkon ko udhar aate dekha. “ye donon avashya bali ke guptachar honge. mujhe marne aa rahe honge. ” sugriv ne tatkal apne sathiyon ko bulaya.
“hamen rishymuk chhoD dena chahiye. ye sthaan ab surakshit nahin hai. bali yahan bhi aa dhamka hai,” sugriv ne apne sathiyon se kaha. “mainne do yuvkon ko idhar aate dekha hai. unke hathon mein dhanush hain. ”
sugriv ghabraya hua tha. par uske pramukh sathi hanuman isse sahmat nahin the. “main jakar pata lagata hoon ki ve kaun hain. bali ki sena mein aise sainik nahin hain. ” hanuman ne bhi donon yuvkon ko dekh liya tha. hanuman par sugriv ko bharosa tha. usne baat maan li.
raam aur lakshman pahaDi par chaDhte chaDhte thak ge the. ve pahaDi sarovar ke paas ruke. thakan mitane. munh haath dhone. tabhi bhes badalkar hanuman vahan pahunch ge. shishtata se prnaam kiya. puchha, “aap donon kaun hain? van mein kyon bhatak rahe hain? aapka bhes muniyon jaisa hai lekin chehre se rajakumar lagte hain. ”
“ham sugriv se milne ja rahe hain. hamein unki sahayata ki avashyakta hai. kya aap unhen jante hain?” raam ne vinamrata se puchha. prarambhik batachit mein hi hanuman sthiti bhaanp ge. ve apne mool roop mein aa ge. prnaam karte hue bole, “main hanuman hoon. sugriv ka sevak. unhonne aapka parichay janne ke liye yahan bheja tha. ”
lakshman ne unhen apna parichay diya. van mein aane ka karan bataya. ye bhi bataya ki ve kabandh aur shabri ki salah par aaye hain. sugriv se milne. unse sahayata mangne.
hanuman ke chehre par halki si musakrahat aa gai. koi usse sahayata mangne aaya hai, jise svayan sahayata chahiye. hanuman samajh ge. raam aur sugriv ki sthiti ek jaisi hai. donon ko ek dusre ki sahayata chahiye. ve mitr ho sakte hain. ek ayodhya se nirvasit hai, dusra kishkindha se. ek ki patni ko ravan utha le gaya hai. dusre ki patni uske bhai ne chheen li hai. donon ke pita nahin hain.
hanuman ne raam aur lakshman ko kandhe par baithaya. kuch hi pal mein ve rishymuk ke shikhar par pahunch ge. hanuman ne donon ko sugriv se milaya. donon ne agni ko sakshi mankar mitrata ka vachan liya. sugriv ne kaha , “aaj se hamare sukh duhakh sajha hain. ”
raam ne sugriv ko sita haran ke sambandh mein bataya to sugriv achanak uth khaDe hue. unhen kuch yaad aaya. bole, “vanron ne mujhe ek stri ke haran ki baat batai thi. wo nishchit roop se sita hi rahi hongi. ravan ka rath isi parvat ke uupar se gaya tha. ”
raam aur lakshman dhyaan se unki baat sun rahe the. sugriv bolte rahe, “sita svayan ko ravan ke changul se chhuDane ka yatl kar rahi theen. vanron ko dekhkar unhonne apne kuch abhushan niche phenk diye the. ” gahnon ki ek potli raam ke samne rakhte hue unhonne kaha, “dekhiye kya ye gahne sita ke hain?”
raam ne abhushan turant pahchan liye. kuch gahne lakshman ne bhi pahchane. gahne dekhkar raam shok sagar mein Doob ge. unke munh se nikla, “dhikkar hai mujhe, he site! main sankat mein tumhari raksha nahin kar saka. mera paurush, bal, parakram, gyaan tumhare kaam nahin aaya. ”
sugriv ne unhen santvna di. “sita avashya mil jayengi. main har prakar se apaki sahayata karunga, mitr. ravan ka sarvanash nishchit hai. ”
raam ke baad sugriv ne apni vyatha katha sunai. “bali ne mujhe rajya se nikal diya hai. meri stri chheen li. mera vadh karne ki cheshta kar raha hai. sankat ke samay hanuman, nal aur neel ne mera saath diya. mujhe kabhi nahin chhoDa. ” usne raam se sahayata mangi. raam bole, “chinta mat karo mitr. tumhein apna rajya bhi milega aur stri bhi. ”
raam dekhne mein sukumar the. unhen dekhkar unki shakti ka pata nahin chalta tha. sugriv ko raam ke ashvasan par bharosa nahin hua. “bali mahabalshali hai. use harana itna asan nahin hai. wo shaal ke saat vrikshon ko ek saath jhakjhor sakta hai. ”
raam ne koi uttar nahin diya. dhanush uthaya aur teer chala diya. shaal ke saton vishal vriksh ek hi baan se katkar gir paDe. is shakti pradarshan par sugriv ne haath joD liye. raam ne kaha, “mitr! ab vilamb kaisa? bali ko yuddh ke liye lalkaro. kishkindha ki rajagaddi ka nirnay usi yuddh mein ho jayega. ”
sugriv chintit ho ge. yuddh mein bali ko harana asambhav tha. raam bole, “chinta mat karo mitr. main peD ki ot se yuddh dekhunga. jab tum par sankat ayega, tumhari sahayata karunga. bali ki mrityu mere hi baan se hogi. wo mara jayega. ”
yojna banakar sab kishkindha pahunch ge. sugriv aage tha. raam, lakshman aur hanuman chhip ge the. ‘mere pichhe raam ki shakti hai,’ sochte hue usne bali ko lalkara. bali ke krodh ki sima na rahi. wo garajta hua nikla. “aaj shikar svayan mere munh tak aaya hai. main tujhe nahin chhoDunga. ”
bhishan mall yuddh hua. donon ek dusre se gunth ge. yuddh mein bali bhari paD raha tha. lagta tha sugriv ka ant nishchit hai. raam peD ke pichhe khaDe the. dhanush haath mein tha. par unhonne teer nahin chalaya. sugriv vahan se kisi tarah jaan bachakar bhaga. sidha rishymuk parvat aakar ruka. raam, lakshman aur hanuman bhi laut aaye.
sugriv raam par kupit tha. “yah dhokha hai. aapne mere saath dhokha kiya. samay par baan nahin chalaya. main nahin bhagta to aaj wo mujhe maar Dalta. ” raam ki kathinai dusri thi. ve duvidha mein the. unhonne sugriv ko samjhaya, “tum donon bhaiyon ke chehre milte julte hain. door se donon ek jaise lagte ho. main bali ko pahchan nahin paya. bina pahchane baan chalata to wo tumhein bhi lag sakta tha. main is chook ke liye taiyar nahin tha. main apne mitr ko khona nahin chahta tha. ”
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aanan phanan mein rajyabhishek ki taiyariyan ki gain. sugriv ko rajagaddi mili. raam ki salah par bali ke putr angad ko yuvaraj ka pad diya gaya. raam ne sugriv ke liye sambodhan badal diya. rajagaddi par baithne ke baad unhen ‘mitr’ nahin kaha. ‘vanarraj’ kahkar sambodhit kiya. sugriv ka man tha ki raam kuch samay vahin rahen. unke saath. raam ne mana kar diya. kaha, “yah pita ki aagya ke viruddh hoga. unhonne mujhe vanvas diya hai. main van mein hi rahunga. ”
raam kishkindha se laut aaye. varsha ritu ke karan aage jana kathin tha. lankarohan kuch samay ke liye sthagit kar diya gaya. is avadhi mein ve prashrvan pahaD par rahe.
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dakshin ki toli kishkindha se chali. angad aur hanuman aage aage chal rahe the. chalte chalte ve aise sthaan par pahunch ge, jiske aage bhumi nahin thi. keval jal tha. vishal samudr. uski gahrai athah thi. lahron ki garaj kaimpa deti thi. samudr ko dekhkar sabka sahas javab de gaya. vanar thak harkar vahin baith ge.
vanar raam ke bare mein charcha karne lage. angad ne kaha, “raam ki seva mein praan bhi chale jayen to dukh nahin hoga. jatayu ne apni jaan de di. hum bhi pichhe nahin hatenge. ”
tabhi ek vishal giddh pahaDi ke pichhe se nikla. wo jatayu ka bhai tha. sampati. usne kaha, “sita lanka mein hain. main janta hoon. ravan unhen lekar gaya hai. aap logon ko ye samudr paar karna hoga. sita tak pahunchne ka bas yahi ek rasta hai. ”
sita ki suchana milne se prasann hua vanar dal phir nirash ho gaya. samudr samne tha. vikral tha. use kaun paar karega? kaise karega? angad udaas ho ge. lakshya samne tha. papar vikat tha. unhen kuch soojh nahin raha tha. buDha sampati unki sahayata kar sakta tha. par is aayu mein itni lambi uDaan sambhav nahin thi.
vanar dal asmanjas mein paD gaya. angad ne pahle hi kah diya tha ki kaam pura kiye bina koi kishkindha vapas nahin jayega. ve na aage ja sakte the, na pichhe. ve ek dusre ki or dekh rahe the. is dal mein sabse buddhiman jamvant the. sab unke paas ge. unke paas bhi is kathin parashn ka koi uttar nahin tha.
tabhi jamvant ki drishti hanuman par paDi. ve sabse door baithe the. chupchap. jamvant jante the ki ye kaam hanuman kar sakte hain. ve pavan putr hain. unki shakti apar hai. lekin unhen svayan iska anuman nahin hai. unki soi hui shakti jamvant ne jagai. kaha, “hanuman! aapko jana hoga. ye karya keval aap kar sakte hain. ” sabki ankhen unhin par tik gain.
raam aur lakshman ka agla paDav rishymuk parvat tha. sugriv vahin rahte the. kabandh aur shabri ki baat donon bhaiyon ko yaad thi. donon ne sugriv se milne ki salah di thi. kaha tha ki ve sita ki khoj mein sahayak honge. donon rajakumar shighrata se vahan pahunchna chahte the.
sugriv ka mool nivas rishymuk parvat nahin tha. kishkindha tha. rishymuk mein wo nirvasan mein apna samay bita rahe the. sugriv kishkindha ke vanarraj ke chhote putr the. baDe bhai ka naam bali tha. pita ke na rahne par jyeshth putr bali raja bana. pahle donon bhaiyon mein bahut prem tha. rajakaj mein kisi baat ko lekar manmutav hua. phir jhagDa ho gaya. itna gambhir ki bali sugriv ko maar Dalne par utar aaya. jaan bachane ke liye sugriv ko rishymuk aana paDa.
rishymuk aakar bhi sugriv ka Dar kam nahin hua tha. wo chaukas rahta tha. vishvasapatr vanar sena nirantar pahre par rahti thi. sugriv svayan bhi pahra deta tha. is Dar se ki kahin bali ke guptachar sainik vahan na pahunch jayen. ek din sugriv pahaDi par khaDa tha. usne do yuvkon ko udhar aate dekha. “ye donon avashya bali ke guptachar honge. mujhe marne aa rahe honge. ” sugriv ne tatkal apne sathiyon ko bulaya.
“hamen rishymuk chhoD dena chahiye. ye sthaan ab surakshit nahin hai. bali yahan bhi aa dhamka hai,” sugriv ne apne sathiyon se kaha. “mainne do yuvkon ko idhar aate dekha hai. unke hathon mein dhanush hain. ”
sugriv ghabraya hua tha. par uske pramukh sathi hanuman isse sahmat nahin the. “main jakar pata lagata hoon ki ve kaun hain. bali ki sena mein aise sainik nahin hain. ” hanuman ne bhi donon yuvkon ko dekh liya tha. hanuman par sugriv ko bharosa tha. usne baat maan li.
raam aur lakshman pahaDi par chaDhte chaDhte thak ge the. ve pahaDi sarovar ke paas ruke. thakan mitane. munh haath dhone. tabhi bhes badalkar hanuman vahan pahunch ge. shishtata se prnaam kiya. puchha, “aap donon kaun hain? van mein kyon bhatak rahe hain? aapka bhes muniyon jaisa hai lekin chehre se rajakumar lagte hain. ”
“ham sugriv se milne ja rahe hain. hamein unki sahayata ki avashyakta hai. kya aap unhen jante hain?” raam ne vinamrata se puchha. prarambhik batachit mein hi hanuman sthiti bhaanp ge. ve apne mool roop mein aa ge. prnaam karte hue bole, “main hanuman hoon. sugriv ka sevak. unhonne aapka parichay janne ke liye yahan bheja tha. ”
lakshman ne unhen apna parichay diya. van mein aane ka karan bataya. ye bhi bataya ki ve kabandh aur shabri ki salah par aaye hain. sugriv se milne. unse sahayata mangne.
hanuman ke chehre par halki si musakrahat aa gai. koi usse sahayata mangne aaya hai, jise svayan sahayata chahiye. hanuman samajh ge. raam aur sugriv ki sthiti ek jaisi hai. donon ko ek dusre ki sahayata chahiye. ve mitr ho sakte hain. ek ayodhya se nirvasit hai, dusra kishkindha se. ek ki patni ko ravan utha le gaya hai. dusre ki patni uske bhai ne chheen li hai. donon ke pita nahin hain.
hanuman ne raam aur lakshman ko kandhe par baithaya. kuch hi pal mein ve rishymuk ke shikhar par pahunch ge. hanuman ne donon ko sugriv se milaya. donon ne agni ko sakshi mankar mitrata ka vachan liya. sugriv ne kaha , “aaj se hamare sukh duhakh sajha hain. ”
raam ne sugriv ko sita haran ke sambandh mein bataya to sugriv achanak uth khaDe hue. unhen kuch yaad aaya. bole, “vanron ne mujhe ek stri ke haran ki baat batai thi. wo nishchit roop se sita hi rahi hongi. ravan ka rath isi parvat ke uupar se gaya tha. ”
raam aur lakshman dhyaan se unki baat sun rahe the. sugriv bolte rahe, “sita svayan ko ravan ke changul se chhuDane ka yatl kar rahi theen. vanron ko dekhkar unhonne apne kuch abhushan niche phenk diye the. ” gahnon ki ek potli raam ke samne rakhte hue unhonne kaha, “dekhiye kya ye gahne sita ke hain?”
raam ne abhushan turant pahchan liye. kuch gahne lakshman ne bhi pahchane. gahne dekhkar raam shok sagar mein Doob ge. unke munh se nikla, “dhikkar hai mujhe, he site! main sankat mein tumhari raksha nahin kar saka. mera paurush, bal, parakram, gyaan tumhare kaam nahin aaya. ”
sugriv ne unhen santvna di. “sita avashya mil jayengi. main har prakar se apaki sahayata karunga, mitr. ravan ka sarvanash nishchit hai. ”
raam ke baad sugriv ne apni vyatha katha sunai. “bali ne mujhe rajya se nikal diya hai. meri stri chheen li. mera vadh karne ki cheshta kar raha hai. sankat ke samay hanuman, nal aur neel ne mera saath diya. mujhe kabhi nahin chhoDa. ” usne raam se sahayata mangi. raam bole, “chinta mat karo mitr. tumhein apna rajya bhi milega aur stri bhi. ”
raam dekhne mein sukumar the. unhen dekhkar unki shakti ka pata nahin chalta tha. sugriv ko raam ke ashvasan par bharosa nahin hua. “bali mahabalshali hai. use harana itna asan nahin hai. wo shaal ke saat vrikshon ko ek saath jhakjhor sakta hai. ”
raam ne koi uttar nahin diya. dhanush uthaya aur teer chala diya. shaal ke saton vishal vriksh ek hi baan se katkar gir paDe. is shakti pradarshan par sugriv ne haath joD liye. raam ne kaha, “mitr! ab vilamb kaisa? bali ko yuddh ke liye lalkaro. kishkindha ki rajagaddi ka nirnay usi yuddh mein ho jayega. ”
sugriv chintit ho ge. yuddh mein bali ko harana asambhav tha. raam bole, “chinta mat karo mitr. main peD ki ot se yuddh dekhunga. jab tum par sankat ayega, tumhari sahayata karunga. bali ki mrityu mere hi baan se hogi. wo mara jayega. ”
yojna banakar sab kishkindha pahunch ge. sugriv aage tha. raam, lakshman aur hanuman chhip ge the. ‘mere pichhe raam ki shakti hai,’ sochte hue usne bali ko lalkara. bali ke krodh ki sima na rahi. wo garajta hua nikla. “aaj shikar svayan mere munh tak aaya hai. main tujhe nahin chhoDunga. ”
bhishan mall yuddh hua. donon ek dusre se gunth ge. yuddh mein bali bhari paD raha tha. lagta tha sugriv ka ant nishchit hai. raam peD ke pichhe khaDe the. dhanush haath mein tha. par unhonne teer nahin chalaya. sugriv vahan se kisi tarah jaan bachakar bhaga. sidha rishymuk parvat aakar ruka. raam, lakshman aur hanuman bhi laut aaye.
sugriv raam par kupit tha. “yah dhokha hai. aapne mere saath dhokha kiya. samay par baan nahin chalaya. main nahin bhagta to aaj wo mujhe maar Dalta. ” raam ki kathinai dusri thi. ve duvidha mein the. unhonne sugriv ko samjhaya, “tum donon bhaiyon ke chehre milte julte hain. door se donon ek jaise lagte ho. main bali ko pahchan nahin paya. bina pahchane baan chalata to wo tumhein bhi lag sakta tha. main is chook ke liye taiyar nahin tha. main apne mitr ko khona nahin chahta tha. ”
lakshman ne samjha bujhakar sugriv ko taiyar kiya. ek aur yuddh ke liye. raam ne kaha, “jao mitr! is baar bali ko pahchanne mein chook nahin hogi. is baar uska ant nishchit hai. ” sugriv Dara hua tha. ghabrahat thi. par raam ke kahne par taiyar ho gaya.
kishkindha pahunchakar usne bali ko chunauti di. lalkara. bali ko sugriv ka ye sahas samajh mein nahin aaya. wo antahpur mein tha. apni patni rani tara ke saath. bali jane laga to tara ne use samjhane ka prayas kiya. jane se mana kiya. bali ne uski baat nahin mani. pair patakta bahar aaya. krodh se ubal raha tha.
bali ne haath hava mein uthaya. mutthi bhinchi hui thi. wo ek ghunse se sugriv ka kaam tamam kar deta. tabhi raam ka baan uski chhati mein laga. wo laDakhDakar gir paDa. bali ke girne par raam, lakshman aur hanuman peDon ki ot se bahar nikal aaye.
aanan phanan mein rajyabhishek ki taiyariyan ki gain. sugriv ko rajagaddi mili. raam ki salah par bali ke putr angad ko yuvaraj ka pad diya gaya. raam ne sugriv ke liye sambodhan badal diya. rajagaddi par baithne ke baad unhen ‘mitr’ nahin kaha. ‘vanarraj’ kahkar sambodhit kiya. sugriv ka man tha ki raam kuch samay vahin rahen. unke saath. raam ne mana kar diya. kaha, “yah pita ki aagya ke viruddh hoga. unhonne mujhe vanvas diya hai. main van mein hi rahunga. ”
raam kishkindha se laut aaye. varsha ritu ke karan aage jana kathin tha. lankarohan kuch samay ke liye sthagit kar diya gaya. is avadhi mein ve prashrvan pahaD par rahe.
varsha ritu beet gai. raam prtiksha kar rahe the. sugriv ki vanarsena ki. sita ki khoj ke liye. sugriv ne rajatilak ke din raam ko iska ashvasan diya tha. lekin wo apna vachan bhool ge.
raag rang mein ulajh ge. raam chintit the. ruke. turant nikal paDe. lakshman ke pichhe pichhe. duhkhi bhi.
hanuman ko sugriv ka vachan yaad tha. rajatilak ke din ve vahin the. unhonne sugriv ko yaad dilaya. sugriv ne vanarsena ekatr karne ka adesh diya. ye kaam senapati nal ko saumpa gaya. pandrah din aur beet ge. lekin sena raam ke paas nahin pahunchi.
raam sugriv ke is vyvahar se kshubdh the. krodh mein unhonne sugriv ke vinash tak ki baat kahi. raam ko chintit dekh lakshman se na raha gaya. unhonne dhanush uthaya to raam ne unhen rok diya. kaha, “sugriv ko bas samjhana hai. wo hamara mitr hai. ” lakshman kishkindha chale ge. sugriv ko samjhane. vahan pahunchakar unhonne dhanush par pratyancha chaDhai. Dori khinchkar chhoDi. uski tankar se sugriv kaanp gaya.
dhanush ki tankar sunte hi use raam ko diya vachan punah yaad aa gaya. tara ne salah di ki ve tatkal jakar raam se milen. kshama yachana karen. sugriv ne aisa hi kiya. raam ke paas jane se poorv sugriv ne hanuman ko avashyak nirdesh diye. vanar sena ekatr karne ka adesh. is baar sugriv sena ekatr hone tak nahin raam ke samne jakar bhaybhit vanarraj ne unse kshama mangi. apni chook ke liye. raam ne unhen uthakar gale laga liya. raam aur sugriv baat kar hi rahe the ki uchhalkud karti vanar toliyan vahan aa pahunchin. hanuman ke saath lakhon vanar the. jamvant ke pichhe bhaluon ki sena.
iske baad lankarohan ki yojna bani. vanron ko chaar toliyon mein banta gaya. angad ko dakshin jane vale agrim dal ka neta banaya gaya. us dal mein hanuman, nal aur neel bhi the. raam ki yahi ichchha thi. unhonne kaha, “vanron ki sena bhejne se pahle chatur aur buddhiman duton ko lanka bheja jaye. yahi uchit hai. ”
raam aur sugriv ki jay jaykar karte vanar apni nirdharit dishaon ki or chal paDe. dakshin jane vale dal ko raam ne rok liya. unhonne hanuman ko apne paas bulaya. apni ungli se anguthi utarkar unhen de di. anguthi par raam ka chihn tha. unhonne kaha, “jab sita se bhent ho to ye anguthi unhen de dena. ve ise pahchan jayengi. samajh jayengi tumhein mainne bheja hai. tum mere doot ho. ”
dakshin ki toli kishkindha se chali. angad aur hanuman aage aage chal rahe the. chalte chalte ve aise sthaan par pahunch ge, jiske aage bhumi nahin thi. keval jal tha. vishal samudr. uski gahrai athah thi. lahron ki garaj kaimpa deti thi. samudr ko dekhkar sabka sahas javab de gaya. vanar thak harkar vahin baith ge.
vanar raam ke bare mein charcha karne lage. angad ne kaha, “raam ki seva mein praan bhi chale jayen to dukh nahin hoga. jatayu ne apni jaan de di. hum bhi pichhe nahin hatenge. ”
tabhi ek vishal giddh pahaDi ke pichhe se nikla. wo jatayu ka bhai tha. sampati. usne kaha, “sita lanka mein hain. main janta hoon. ravan unhen lekar gaya hai. aap logon ko ye samudr paar karna hoga. sita tak pahunchne ka bas yahi ek rasta hai. ”
sita ki suchana milne se prasann hua vanar dal phir nirash ho gaya. samudr samne tha. vikral tha. use kaun paar karega? kaise karega? angad udaas ho ge. lakshya samne tha. papar vikat tha. unhen kuch soojh nahin raha tha. buDha sampati unki sahayata kar sakta tha. par is aayu mein itni lambi uDaan sambhav nahin thi.
vanar dal asmanjas mein paD gaya. angad ne pahle hi kah diya tha ki kaam pura kiye bina koi kishkindha vapas nahin jayega. ve na aage ja sakte the, na pichhe. ve ek dusre ki or dekh rahe the. is dal mein sabse buddhiman jamvant the. sab unke paas ge. unke paas bhi is kathin parashn ka koi uttar nahin tha.
tabhi jamvant ki drishti hanuman par paDi. ve sabse door baithe the. chupchap. jamvant jante the ki ye kaam hanuman kar sakte hain. ve pavan putr hain. unki shakti apar hai. lekin unhen svayan iska anuman nahin hai. unki soi hui shakti jamvant ne jagai. kaha, “hanuman! aapko jana hoga. ye karya keval aap kar sakte hain. ” sabki ankhen unhin par tik gain.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।