राम का अयोध्या आगमन
ram ka ayodhya agaman
तूरइँ हयइँ णिणद्दिय-ति-जयइँ। णंद-सुणंद-मद्द-जय-विजयइँ॥
मेह-मइंद-समुदृ-णिधोसइँ। णंदिघोस-जयघोस-सुघोसइँ॥
सिव-संजीवण-जीवणिणदृइँ। वद्धण-वद्धमाण-माहेंदइँ॥
सुंदर-संति-सोम-संगीयहँ। णंदावत्त-कण्ण-रमणीयइँ॥
गहिर-पसण्णइँ पुण्ण-पवित्तइँ। अवराइँ वि वहुविह-वाइत्तइँ॥
झल्लरि-भंभा-भेरि-वमालइँ। मद्दल-णंदि-मउंदा-तालइँ॥
करडा-करडइँ मउंदा-ढक्कइँ। काहल-टिविल-ढक्क-पडिढक्कइँ॥
ढड्ढिय-पणव-तणव-दडि-दद्दुर। डमरुअ-गुंजा-रुंजा वंधुर॥
धत्ता
अट्ठारह अक्खोहणिउ रयणीयर-णयरहों आणियउ।
अवरहुँ तूरहुँ तूरियहुँ कह कोडिउ किं परियाणियउ॥
जय-जय कारु करंतेंहिँ लोएँहि। मंगल-धवलुच्छाह-पओएँहि॥
अइहव-सेसासीस-सहासेंहि। तोरण-णिवह-छडा-विण्णासेंहि॥
दहि-दोवा-दप्पण-जल-कलसेंहिँ। मोत्तिय-रङ्गावलि-णव-कणिसेंहिं॥
वम्मण-वयणुग्घोसिय-वेएँहिँ। कंडिय-जजु-रिउ-सामा-भेएँहि॥
णढ-कह-कहय-छत्त-फंफावेंहिँ। लङ्खिय-वत्तारुहण-विहावेंहिँ॥
भट्टेहिं वयणुच्छाह पढंतेंहिँ। वायालीस वि सर सुमरंतेंहिँ॥
भल्लप्फोढण-सरेँ हिँ विचितेंहिं। इंदयाल-उप्पाइय-चितेंहि॥
मंद-फेंद-वंदेंहिं कुद्दंतेंहिँ। डोंवेहिँ वंसारुहणु करंतेंहिँ॥
धत्ता
पुरें पइसंतहों राहवहों ण कला-विण्णाणइँ केवलइँ।
दुंदुहि ताडिय सुरेंहिंणहें अच्छरें हि मि गीयइँ मंगलइँ॥
नंद, सुनंद, भद्रजय, विजय आदि तीनों लोकों को निनादित करने वाले तूर्य बज उठे। मेघ, मइंद तथा समुद्र निर्घोष, नंदीघोष, सुघोष, शिवसंजीवन, जीवनिनाद्र, वर्धन, बर्धमान महेंद्र, सुंदर-शांति, सोम, संगीतक, नंदावर्त, कर्ण, रमणीयक, गंभीर, पुण्यपवित्र जैसे और भी वाद्य बज उठे। झल्लरि, भंभा, भेरी, वमाल, मर्दल, नंदी, मृदंग-ताल, करड़ा, करड़, मृदंग, ढक्का, काइल, टिविल, ढक्का, प्रतिढक्का, ढड्ढिय, प्रवण, तवण, दडि, दर्दुर, डमरुक, गुंजा, रंजा, वंधुर आदि वाद्य भी बजे।
निशाचरनगरी लंका से अट्ठारह अक्षौहिणी सेना लाई गई। तूर और तर्यू आदि कई करोड़ थे, उन्हें कौन जान सकता था!
मंगल धवल उत्साह आदि गानों के प्रयोग-द्वारा, जय-जयकार की ध्वनि-द्वारा, अतिशय आरती तथा आशीर्वचनों-द्वारा, तोरण समूह औऱ दृश्यों के निर्माण-द्वारा, दही, दूर्वा, दर्पण, और जल कलशों-द्वारा, मोतियों की रंगोली और नए धान्यों द्वारा, ब्राह्मणों से उच्चरित वेदों-द्वारा, ऋक्, यजुः और सामवेदों के पाठ द्वारा, नट, कवि, कत्थक, छत्र और फंफावों द्वारा, रस्सीपर चढ़ने वाले नटों के प्रदर्शन-द्वारा, भाटों से उच्चारित उत्साह गीतों-द्वारा, बयालीस स्वरों की ध्वनियों-द्वारा, गाते हुए मंद और फेंदों के समूह-द्वारा, बाँसुरी बजाते हुए डोमों के द्वारा नगर प्रवेश करते हुए राम का स्वागत किया गया। राम के नगर में प्रवेश करते ही केवल कला और विज्ञान का ही प्रदर्शन नहीं हुआ, वरन् आकाश में देवताओं ने दुंदुभियाँ बजाईं और अप्सराओं ने मंगल गीतों का गान किया।
- पुस्तक : पउम चरिउ (पृष्ठ 106)
- संपादक : हीरालाल जैन
- रचनाकार : स्वयंभू
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
- संस्करण : 1970
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