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षड्ऋतु वर्णन (पावस)

shaD.rtu var.nan (paavas)

मलिक मोहम्मद जायसी

मलिक मोहम्मद जायसी

षड्ऋतु वर्णन (पावस)

मलिक मोहम्मद जायसी

और अधिकमलिक मोहम्मद जायसी

    रितु पावस बिरसै पिउ पावा। सावन भादौं अधिक सोहावा॥

    कोकिल बैन पाँति बग छूटी। धनि निसरी जेउँ बीर बहूटी॥

    चमकै बिज्जु बरिस जग सोना। दादर मोर सबद सुठि लोना॥

    रँग राती पिय सँग निसि जागै। गरजै चमकि चौंकि कँठ लागे॥

    सीतल बंद ऊँच चौबारा। हरियर सब देखिअ संसारा॥

    मलै समीर बास सुख बासी। बेइलि फूल सेज सुख डासी॥

    हरियर भुम्मि कुसुंभी चोला। पिय संगम रचा हिंडोला॥

    पौन भरक्के हिय हरख लागै सियरि बतास।

    धनि जानै यह पौनु है पौनु सो अपनी आस॥

    पावस ऋतु में बाला कंत के साथ विलास करती हो तो उसे सावन-भादों मास अधिक सुहावने लगते हैं। उस समय कोयल की बोली सुनाई पड़ती है और बगुलियों की पंक्तियाँ मेघों में बिखर जाती हैं। युवतियाँ इस प्रकार बाहर निकलती हैं, जैसे बीर-बहूटियाँ हों। बिजली चमकती है, संसार में सोना-सा बरसता है। दादुर और मोर का शब्द अति सुंदर लगता है। प्रिय के संग प्रेम-रस में सनी हुई युवती रात में जागती है और मेघों के चमक कर गरजने से चौंककर प्रिय का कंठालिंगन करती है। ऊँचे चौबारे पर शीतल बूँदें पड़ रही हैं। सारा संसार हरा-हरा दिखाई पड़ रहा है। सुख बासी में मलय समीर की सुगंध रही है। वहाँ खिले हुए बेले के फूलों से सुख-सेज बनाई गई है। भूमि पर हरियाली छा गई तो युवती ने कुसुंभी चोला पहना और प्रिय के संग में हिंडोला सजाया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 336)
    • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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