सँवरौं आदि एक करतारू। जेइँ जिउ दीन्ह कीन्ह संसारू॥
कीन्हेसि प्रथम जोति परगासू। कीन्हेसि तेहिं पिरीति कबिलासू॥
कीन्हेसि अगिनि पवन जल खेहा। कीन्हेसि बहुतइ रंग उरेहा॥
कीन्हेसि धरती सरग पतारू। कीन्हेसि बरन बरन अवतारू॥
कीन्हेसि सात दीप ब्रह्मंडा। कीन्हेसि भुवन चौदहउ खंडा॥
कीन्हेसि दिन दिनअर ससि राती। कीन्हेसि नखत तराइन पाँती॥
कीन्हेसि धूप सीउ औ छाहाँ। कीन्हेसि मेघ बीजु तेहि माहाँ॥
कीन्ह सबइ अस जाकर दोसरहि छाज न काहु।
पहिलेहिं तेहिक नाउँ लइ कथा कहौं अवगाहु॥
आरंभ में मैं उस एक करतार का सुमिरन करता हूँ, जिसने प्राण (जिउ) दिया और संसार रचा। उसने पहले ज्योति का प्रकाश किया। फिर उसकी प्रसन्नता के लिए कैलास (स्वर्ग) बनाया। उसने आग, हवा, जल और मिट्टी (खेहा) ये चार तत्व बनाए और उनसे बहुत रंगों के चित्र लिखे। उसने धरती, स्वर्ग और पाताल बनाया। उनमें भाँति-भाँति की योनियाँ रचीं। उसने दिन और सूर्य एंव चंद्रमा और रात बनाई। उसने नक्षत्र और तारों की पंक्तियाँ बनाईं। उसने धूप, शीत और छाँह बनाई। उसने मेघ बनाए और उनमें बिजली रची।
- पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 1)
- रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 2007
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