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नखशिख (दो)

nakhshikh (do)

मलिक मोहम्मद जायसी

कहौं लिलाट दुइजि कै जोती। दुइजिहि जोति कहाँ जग ओती॥

सहस कराँ जो सुरुज दिपाई। देखि लिलाट सोउ छपि जाई॥

का सरबरि तेहि देउं मयंकू। चाँद कलंकी वह निकलंकू॥

चाँदहि पुनि राहु गरासा। वह बिनु राहु सदा परगासा॥

तेहि लिलाट पर तिलक बईठा। दुइजि पाट जानहुँ धुव डीठा॥

कनक पाट जनु बैठेउ राजा। सबै सिंगार अत्र लै साजा॥

ओहि अगें थिर रहै कोऊ। दहुँ काकहँ अस जुरा सँजोऊ॥

खरग धनुक चक्र बान दुइ जग मारन तिन्ह नाऊँ।

सुनि कै पट मुतछि कै राजा मो कहँ भए एक ठाउँ॥

पद्मावती के ललाट की ज्योति द्वितीया के चंद्रमा के समान है। द्वितीया के चंद्रमा की भी ज्योति संसार में उतनी कहाँ है? सहस्र किरणों से जो सूर्य चमकता है, ललाट को देखकर वह भी छिप जाता है। चंद्रमा से उसकी क्या तुलना करूँ, क्योंकि चाँद में कलंक है वह कलंक रहित है। और फिर चाँद को राहु ग्रसता है, वह राहु की बाधा के बिना सदा प्रकाशित रहता है। उस ललाट पर लगाया हुआ तिलक ऐसा लगता है मानो द्वितीया के चंद्रमा के आसन पर ध्रुव बैठा हुआ दिखाई पड़ रहा हो, अथवा मानो सब शृंगार करके और अस्त्रों से सज्जित हो राजा अपने सिंहासन पर बैठा हो। उस तिलक के आगे कोई स्थिर नहीं रहता। जाने किसकी विजय के लिए निम्नलिखित सामान जुड़ा है?

स्रोत :
  • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 98)
  • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 2007

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