विवादी बढ़े है यहाँ कैसे-कैसे
vivaadii baDhe hai yahaa.n kaise kaise
प्रतापनारायण मिश्र
Pratapnarayan Mishra
विवादी बढ़े है यहाँ कैसे-कैसे
vivaadii baDhe hai yahaa.n kaise kaise
Pratapnarayan Mishra
प्रतापनारायण मिश्र
और अधिकप्रतापनारायण मिश्र
विवादी बढ़े है यहाँ कैसे-कैसे।
‘कलम आते हैं दरमियाँ कैसे-कैसे’॥
जहाँ देखिये मलेच्छ सेना के हाथों।
मिटे नामियों के निशाँ कैसे-कैसे॥
बने पढ़ के गौरण्ड-भाषा द्विजाती।
‘मुरीदाने पीरे-मुगाँ कैसे-कैसे’॥
बसो मूर्खते देवि, आयों के जी में।
‘तुम्हारे लिये हैं मकाँ कैसे-कैसे’॥
अनुद्योग आलस्य सन्तोष सेवा।
‘हमारे भी हैं मिहरबाँ कैसे-कैसे’॥
न आई दया हाय गो भक्षियों को।
‘तड़पते रहे नीमजाँ मारने को’।
विधाता ने याँ मक्खियाँ मारने को।
‘बनाये हैं खुशरू जबाँ कैसे-कैसै’॥
अभी देखिये क्या दशा देश की हो।
‘बदलता है रंग आसमाँ कैसे-कैसे’॥
हैं निर्गंध इस भारती-वाटिका के।
‘गुलो लाल ओ अरगवाँ कैसे-कैसे’॥
हमें वह दुखद हाय भूला है जिसने।
‘तवाना किये नातवाँ कैसे-कैसे’॥
प्रताप अब तो होटल में निर्लज्जता के।
‘मजे लूटते हैं जवाँ कैसे कैसे’॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 62)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : प्रतापनारायण मिश्र
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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