कभी ख़ामोशियों में तो कभी...
kabhi khamoshiyon mein to kabhi. . .
कमलेश भट्ट कमल
Kamlesh Bhatt Kamal
कभी ख़ामोशियों में तो कभी...
kabhi khamoshiyon mein to kabhi. . .
Kamlesh Bhatt Kamal
कमलेश भट्ट कमल
और अधिककमलेश भट्ट कमल
कभी ख़ामोशियों में तो कभी लफ़्ज़ों में ढलता हूँ,
हिमालय की तरह हर रोज़ कुछ जमता, पिघलता हूँ।
पता है, चलने में हर बार गिरता हूँ सँभलता हूँ,
मगर मंज़िल को पाने के लिए चलता ही चलता हूँ।
कोई तो है सिफ़त तुममें, इसे जानो न जानो तुम,
जो तुमसे मिलता हूँ तो ताज़ादम होकर निकलता हूँ।
यही चाहत है फ़ितरत भी कि मैं दुनिया को कुछ बदलूँ,
हक़ीक़त ये है, ऐसा करके मैं ख़ुद को बदलता हूँ।
चुनौती आ खड़ी होती है फिर से आज़माने को,
बड़ी मुश्किल से अपने आप में जैसे सँभलता हूँ।
भले सूरज हो तुम लेकिन अँधेरों में नहीं जाते,
दिया ही मैं सही, लेकिन अँधेरों में तो जलता हूँ।
- पुस्तक : ज्योति जगाए बैठे हैं (पृष्ठ 36)
- रचनाकार : कमलेश भट्ट कमल
- प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान
- संस्करण : 2022
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