न है पानी ही आँखों में, न तो संवेदनाएँ हैं
na hai pani hi ankhon mein, na to sanwednayen hain
लक्ष्मण गुप्त
Laxman Gupta
न है पानी ही आँखों में, न तो संवेदनाएँ हैं
na hai pani hi ankhon mein, na to sanwednayen hain
Laxman Gupta
लक्ष्मण गुप्त
और अधिकलक्ष्मण गुप्त
न है पानी ही आँखों में, न तो संवेदनाएँ हैं
बड़ी बेजान बासी-सी हमारी कल्पनाएँ हैं
उदासी ही उदासी है फ़क़त, हर एक चेहरे पर
सभी के पास अपनी अनकही-सी कुछ कथाएँ हैं
न खुलकर हँस ही पाते हैं, न रो पाते हैं जी भर हम
कहाँ बस में हमारे अब हमारी भावनाएँ हैं
उसे बाज़ार ने तन्हा किया होगा, चलो देखें
तरक़्क़ी के सफ़र की ये तो सस्ती यातनाएँ हैं
- रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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