मेरी कहानी सुनि री
meri kahani suni ri
मेरी कहानी सुनि री यह बात ख़्वाब की है।
देखी सरद जुन्हाई पारे की आब सी है॥
सोंधे को लिए पवन मंद तहाँ आवती थी।
सारो मधुर सुरन सों रस-केलि गावती थी॥
ताब सी महताब लबों आब चमकती थी।
नीलोफरन पै भँवर की ओ भीर रमकती थी॥
झलमास तख़्त ऊपर खिलबत करें बिराजे।
छबि को निहारि दंपति की मार-रति भी लाजें॥
इकबारगी दोनों में न रही होसयारी।
प्यारी कहे कहाँ पिय, पिय कहे प्यारी-प्यारी॥
मैं तो अजाइब इस्क देखि अजब माहिं रही।
ब्रजनिधि गुज़री मुझ पर सो जाय नाहिं कही॥
- पुस्तक : ब्रजनिधि-ग्रंथावली (पृष्ठ 172)
- रचनाकार : ब्रजनिधि
- संस्करण : 1933
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