किस सदी का हुनर ढूँढ़ता फिर रहा
kis sadi ka hunar DhunDhata phir raha
किस सदी का हुनर ढूँढ़ता फिर रहा
बात में जो असर ढूँढ़ता फिर रहा
आदमी को ये क्या हो गया, देखिए
घर में रहके भी घर ढूँढ़ता फिर रहा
जिसकी आँखें बहुत भा गई हैं मुझे
उसको दिल दर-ब-दर ढूँढ़ता फिर रहा
ज़िंदगी कबसे ठहरी मिरी इक जगह
पाँव हर दम सफ़र ढूँढ़ता फिर रहा
- रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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