धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी
dharti ke kaghaz par meri taswir adhuri rahni thi
भारत भूषण
Bharat Bhushan
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी
dharti ke kaghaz par meri taswir adhuri rahni thi
Bharat Bhushan
भारत भूषण
और अधिकभारत भूषण
तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी, तस्वीर अधूरी रहनी थी
रेती पर लिखे नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था
मलयानिल के बहकाने पर, बस एक प्रभात निखरना था
गूँगे के मनोभाव जैसे, वाणी स्वीकार न कर पाए
ऐसे ही मेरा हृदय-कुसुम, असमर्पित सूख बिखरना था
जैसे कोई प्यासा मरता, जल के अभाव में विष पी ले
मेरे जीवन में भी कोई, ऐसी मजबूरी रहनी थी
इच्छाओं के उगते बिरुवे, सब के सब सफल नहीं होते
हर एक लहर के जूड़े में, अरुणारे कमल नहीं होते
माटी का अंतर नहीं मगर, अंतर रेखाओं का तो है
हर एक दीप के हँसने को, शीशे के महल नहीं होते
दर्पण में परछाई जैसे, दीखे तो पर अनछुई रहे
सारे सुख-वैभव से यूँ ही, मेरी भी दूरी रहनी थी
मैंने शायद गत जन्मों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे
चातक का स्वर सुनने वाले, बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध किया होगा, जिसकी कुछ क्षमा नहीं होती
तितली के पर नोचे होंगे, हिरनों के दृग फोड़े होंगे
अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे
तन को बेचैन विचरना था, मन में कस्तूरी रहनी थी
- पुस्तक : मेरे चुनिंदा गीत (पृष्ठ 181)
- रचनाकार : भारत भूषण
- प्रकाशन : अमरसत्य प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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