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जब यार देखा नैन भर

jab yar dekha nain bhar

अमीर ख़ुसरो

अमीर ख़ुसरो

जब यार देखा नैन भर

अमीर ख़ुसरो

और अधिकअमीर ख़ुसरो

    जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर,

    ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाय कर।

    जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया,

    हक़्क़ा इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर।

    तूँ तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है,

    तुझ दोस्ती बिसियार है, एक शब मिलो तुम आय कर।

    जाना तलब तेरी करूँ, दीगर तलब किसकी करूँ,

    तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर।

    मेरो जो मन तुम ने लिया, तुम उठा ग़म को दिया,

    तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर।

    ख़ुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में लावे कुछ अजब,

    क़ुदरत ख़ुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर।

    अमीर ख़ुसरो कहते हैं कि जब प्रेमी को आँखें भर कर अर्थात अच्छी तरह देखा, तो हृदय की चिंता समाप्त हो गई। हर संसार में ऐसा कोई परिचित-अनजान नहीं है जो उसे समझाकर रखे। मेरा प्रेमी जब आँखों से ओझल या अदृश्य हो गया, तो चिंता के कारण मेरा हृदय तड़पने लगा। हे ख़ुदा, तुमने ये क्या किया! ऐसी आह निकलने के साथ ही आँखों से आँसू गिरने लगे। कवि कहता है कि हे प्रिय, तू तो हमारा परम प्रेमी है और तुझ पर मेरा पूरा प्रेम-भाव है। तुम्हारे साथ मेरी मित्रता विशिष्ट या शाश्वत है; तुम मुझे एक रात्रि में आकर मिलने का सुख दो। तुम मेरे प्राण हो, मैं तुम्हें सदा अपने पास देखना चाहता हूँ। तुम्हारे सिवा मैं किसकी अभिलाषा करूँ? मैं रात-दिन तेरी ही चिंता अपने हृदय में करता रहता हूँ। इसलिए हे प्रिय, एक दिन आकर तुम मुझसे मिलो और मुझे तसल्ली दो। मैंने अपना हृदय तुम्हें समर्पित कर दिया है, परंतु तुमने इस समर्पण के बदले मुझे वेदना-व्यथा दी है। तुमने ऐसा कठोर व्यवहार किया, जैसे पतंगा आग पर प्रेमातिरेक से गिरता है, परंतु आग उसे जलाकर नष्ट कर देती है। कवि ख़ुसरो कहते हैं कि प्रेम-व्यवहार की ये बातें बड़ी सुंदर एवं भावपूर्ण हैं, इसके लिए हृदय में कोई ग़लत बात या विपरीत बात नहीं लाई जावे। इस संसार में ईश्वर की लीला विचित्र है, ख़ुदा की सृष्टि अनोखी है। जब उस ईश्वर ने जीवन प्राण दिये हैं तो वह हार्दिक प्रेम-भावना भी प्रदान करे और प्रेमी से मिलन भी करा दे। कवि का आशय परमात्मा प्रियतम से मिलन एवं साक्षात्कार की कामना-पूर्ति है। इससे ईश्वर को ही ऐसा प्रेमी बताया गया है, जिससे सनातन काल से जीव प्रेम-भाव रखता रहा और उसी से समागम भी चाहता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : अमीर खुसरो (पृष्ठ 126)
    • रचनाकार : अमीर खुसरो
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 1993

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