तिन सब में है मुख्य राज भारत को उत्तम
tin sab mein hai mukhy raj bharat ko uttam
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
तिन सब में है मुख्य राज भारत को उत्तम
tin sab mein hai mukhy raj bharat ko uttam
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
और अधिकबदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
तिन सब में है मुख्य राज भारत को उत्तम।
जाहि विधाता रच्यो जगत के सीस भाग सम॥
जहाँ अन्न, धन, जन, सुख संपत्ति रही निरंतर।
सबै धात, पसु, रतन, फूल, फल, वेलि वृच्छ वर॥
झील, नदी, नद, सिंधु, सैल, सब ऋतु मनभावन।
रूप, सील, गुन, विद्या, कला कुसल असंख्य जन॥
जिनकी आशा करत सकल जग हाथ पसारत।
आसृत औरन के न रहे कबहूँ नर भारत॥
बीर, धर्मरत, भक्त, त्यागि, ज्ञानी, विज्ञानी।
रही प्रज्ञा सब पै निज राजा हाथ बिकानी॥
निज राजा अनुसासन मन, वच, करम धरत सिर।
जगपति सी नरपति मैं राखत भक्ति सदा थिर॥
सदा सत्रु सों हीन, अभय, सुरपति छवि छाजत।
पालि प्रजा भारत के राजा रहे विजारत॥
पै कछु कही न जाय, दिनन के फेर फिरे अब।
दुरभागनि सों इत फैले फल फूट बैर जब॥
भयो भूमि भारत में महा भयंकर भारत।
भये बीर बर सकल सुभट एकहि सँग गारत॥
भरे विबुध नरनाह सकल चातुर गुन मंडित।
बिगरो जन समुदाय बिना पथ दर्शक पंडित॥
सत्य धर्म के नसत गयो बल, बिक्रम, साहस।
विद्या, बुद्धि विवेक, विचाराचार रह्यो जस॥
नये-नये मत चले, नये झगरे नित बाढ़े।
नये-नये दुख परे सीस भारत पै गाढ़े॥
छिन्न-भिन्न ह्वै साम्राज्य लघु राजन के कर।
गयो परस्पर कलह रह्यो बस भारत में भर॥
रही सकल जग ब्यापी भारत राज बड़ाई।
कौन बिदेसी राज न जो या हित ललचाई॥
रह्यो न तब तिन में इहि ओर लखन को साहस।
आर्यराज राजेसुर दिगबिजयिन के भय बस॥
पै लखि बीरबिहीन भूमि भारत की आरत।
सबै सुलभ समझ्यो या कहँ आतुर असि धारत॥
तेरो प्रबल प्रताप सकल सम्राट दबायो।
खींस बाय कै फरासीस जातें सिर नायो॥
जरमन जर मन माँहि बनो जाको है अनुचर।
रूम रूम सम, रूस रूस बनि फूस बराबर॥
पाय परसि तुब पारस पारस के सम पावत।
पकरि कान अफगान राज पर तुम बैठावत॥
दीन बनो सो चीन, पीन जापान रहत नत।
अन्य छुद्र देशाधिप गन की कौन कहावत॥
जग जल पर तुव राज थलहु पर इतो अधिकतर।
सदा प्रकासत जामैं अस्त होत नहिं दिनकर॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 41)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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