सुख का दिन डूबे डूब जाए
sukh ka din Duube Duub jaa.e
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Surykant Tripathi Nirala
सुख का दिन डूबे डूब जाए
sukh ka din Duube Duub jaa.e
Surykant Tripathi Nirala
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
और अधिकसूर्यकांत त्रिपाठी निराला
सुख का दिन डूबे डूब जाए।
तुमसे न सहज मन ऊब जाए।
खुल जाए न मिली गाँठ मन की,
लुट जाए न उठी राशि धन की,
धुल जाए न आन शुभानन की,
सारा जग रूठे रूठ जाए।
उलटी गति सीधी हो न भले,
प्रति जन की दाल गले न गले,
टाले न बान यह कभी टले,
यह जान जाए तो ख़ूब जाए।
- पुस्तक : निराला संचयिता (पृष्ठ 160)
- संपादक : रमेशचंद्र शाह
- रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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