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तकली-सा जीवन

takli sa jivan

जय चक्रवर्ती

जय चक्रवर्ती

तकली-सा जीवन

जय चक्रवर्ती

और अधिकजय चक्रवर्ती

    नाच रहा है एक कील पर

    तकली-सा जीवन

    पता नहीं कब बचपन बीता

    कब बीता यौवन

    क़द से छोटी रही

    गृहस्थी की

    हरदम चादर

    सर ढ़कने पर

    पाँव खुल गए

    पाँव ढके तो सर

    आँखों की नींदों से अक्सर

    रोज़ चली अनबन

    रहा उम्र-भर

    सरकारी-नौकर होने

    का भ्रम

    मगर अभावों की

    सत्ता

    हर वक़्त रही कायम

    गर्म तवे पर पानी की—

    छींटों जैसा वेतन

    मई-जून के सूरज-सा

    दुख

    सर पर रोज़ तपा

    आस्तीन के साँपों ने

    मेरा ही

    नाम जपा

    ख़ुशियाँ आईं हिस्से

    जैसे कोटे का राशन

    स्रोत :
    • रचनाकार : जय चक्रवर्ती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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