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मेरा धन है स्वाधीन क़लम

mera dhan hai svaadhiin qal

गोपाल सिंह नेपाली

गोपाल सिंह नेपाली

मेरा धन है स्वाधीन क़लम

गोपाल सिंह नेपाली

मेरा धन है स्वाधीन क़लम

राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन क़लम

जिसने तलवार शिवा को दी

रोशनी उधार दिवा को दी

पतवार थमा दी लहरों को

ख़ंजर की धार हवा को दी

अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन क़लम

रस-गंगा लहरा देती है

मस्ती-ध्वज फहरा देती है

चालीस करोड़ों की भोली

क़िस्मत पर पहरा देती है

संग्राम-क्रांति का बिगुल यही, है यही प्यार की बीन क़लम

कोई जनता को क्या लूटे

कोई दुखियों पर क्या टूटे

कोई भी लाख प्रचार करे

सच्चा बनकर झूठे-झूठे

अनमोल सत्य का रत्नहार, लाती चोरों के छीन क़लम

तुलसी चंदा तो सूर-सूर

केशव-से तारे दूर-दूर

बाक़ी हैं जुगनू, मैं तो बस

जागरण-पक्ष में चूर-चूर

रवि लाने वाला दीपक हूँ, मेरी लौ में लवलीन क़लम

बस मेरे पास हृदय-भर है

यह भी जग को न्योछावर है

लिखता हूँ तो मेरे आगे

सारा ब्रह्मांड विषय-भर है

रँगती चलती संसार-पटी, यह सपनों की रंगीन क़लम

लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से

बचता हूँ कैंची-दर्ज़ी से

आदत रही कुछ लिखने की

निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से

कोई छेड़े तो तन जाती, बन जाती है संगीन क़लम

मत पूछो छलने वालों से

कतराओ जलने वालों से

पूछो जनता से और सही

राहों पर चलने वालों से

क्या और किसी की है ऐसी, इठलाती हुई हसीन क़लम

फूलों जैसा हर मुखड़ा है

हर शब्द हृदय का टुकड़ा है

छूकर यह क़लम, तराना बन

जाता हर दिल का दुखड़ा है

मुस्कान रचाती आँसू में, ग़म में डूबी ग़मगीन क़लम

लेकर रंगीनी की बहार

इठलाते चलते अलंकार

हर दर्द बना देता कवि को

सब से मस्ताना गीतकार

नित नई कल्पना करती है, यह अनुभव की प्राचीन क़लम

ग़ैरों की क़लम चिलम जैसी

फैलाती घटा भरम जैसी

नित धुआँ उड़ाती रहती है

पर मेरे पास क़लम ऐसी

उड़ने को उड़ जाए नभ में, पर छोड़े नहीं ज़मीन क़लम

जो आलोचक, विष घोल नहीं

साहित्य समझ, सुन, बोल नहीं

रंगरूटों से कह दे कोई

मंदिर में पीटे ढोल नहीं

तू दलबंदी पर मरे, यहाँ लिखने में है तल्लीन क़लम

तुझ-सा लहरों में बह लेता

तो मैं भी सत्ता गह लेता

ईमान बेचता चलता तो

मैं भी महलों में रह लेता

हर दिल पर झुकती चली मगर, आँसू वाली नमकीन क़लम

मेरा धन है स्वाधीन क़लम

स्रोत :
  • पुस्तक : संकलित कविताएँ (पृष्ठ 126)
  • संपादक : नंदकिशोर नंदन
  • रचनाकार : गोपाल सिंह नेपाली
  • प्रकाशन : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया
  • संस्करण : 2013

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