एक गीत (दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!)
ak geet
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं—
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे—
यह ध्यान परों में चिड़िया के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्लता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
- पुस्तक : आरोह (भाग-2) (पृष्ठ 7)
- रचनाकार : हरिवंशराय बच्चन
- प्रकाशन : एन सी ई आर टी
- संस्करण : 2022
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