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आँगन की तुलसी मुरझानी

angan ki tulsi murjhani

नईम

नईम

आँगन की तुलसी मुरझानी

नईम

और अधिकनईम

    आँगन की तुलसी मुरझानी,

    चौपालों की पीपल।

    देती नहीं प्रार्थनाएँ अब,

    थोड़ा भी संबल।

    बरगद पर गांडीव टँगे हैं छाया सहमी-सी,

    तीर्थक्षेत्र से वही हवाएँ लगें विधर्मी-सी।

    धुर अकाल खड़खड़ा रहा है,

    बुरी तरह साँकल।

    हार गए रन बुरी तरह फिर कालिंजर झाँसी।

    औचक मारे हुए समय ये प्रयाग काशी।

    मृगतृष्णाएँ भी आँखों से—

    हुई आज ओझल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लिख सकूँ तो— (पृष्ठ 41)
    • रचनाकार : नईम
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2003

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