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सजल है कितना सवेरा!

sajal hai kitna sawera!

महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा

सजल है कितना सवेरा!

महादेवी वर्मा

और अधिकमहादेवी वर्मा

    सजल है कितना सवेरा!

    गहन तम में जो कथा इसकी भूला,

    अश्रु उस नभ के, चढ़ा शिर फूल फूला,

    झूम-झुक-झुक कह रहा 'हर श्वास तेरा'!

    राख से अंगार-तारे झर चले हैं,

    धूम-बंदी रंग के निर्झर खुले हैं,

    खोलता है पंख रूपों में अँधेरा!

    कल्पना निज देखकर साकार होते

    और उसमें प्राण का संचार होते,

    सो गया रख तूलिका दीपक-चितेरा!

    अलम पलकों से पता अपना मिटाकर,

    मृदुल तिनकों में व्यथा अपनी छिपाकर,

    नयन छोड़े स्वप्न ने, खग ने बसेरा!

    ले उषा ने किरण-अक्षत हास-रोली,

    रात अंकों से पराजय-रेख धो ली,

    राग ने फिर साँस का संसार घेरा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : संधिनी (पृष्ठ 137)
    • रचनाकार : महादेवी वर्मा
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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