हमको भी आता है
Humko Bhi Aata Hai
पर्वत के सीने से झरता है
झरना...
हमको भी आता है
भीड़ से गुज़रना।
कुछ पत्थर
कुछ रोड़े
कुछ हंसों के जोड़े
नींदों के घाट लगे
कब दरयाई घोड़े
मैना की पाँखें हैं
बच्चों की आँखें हैं
प्यारी है नींद, मगर शर्त
है, उबरना।
खेतों से
मेड़ों से
साखू के पेड़ों से
कुछ ध्वनियाँ आती हैं
नदी के थपेड़ों से
वर्दी में, सादे में
बाढ़ के इरादे में
आगे-पीछे पानी देख के
उतरना।
गूँगी है
बहरी है
काठ की गिलहरी है
आड़ में मदरसे हैं
सामने कचहरी है
बँधे खुले अंगों से
भर पाया रंगों से
डालों के सेव हैं, सँभाल के
कुतरना।
- पुस्तक : एक पेड़ चाँदनी (पृष्ठ 61)
- रचनाकार : देवेंद्र कुमार
- प्रकाशन : राजेश प्रकाशन
- संस्करण : 1993
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