'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (एक)
chaar mahine ho chuke, brahman ki sudhi lew
प्रतापनारायण मिश्र
Pratapnarayan Mishra
'ब्राह्मण' पत्र की पाठकों से अपील (एक)
chaar mahine ho chuke, brahman ki sudhi lew
Pratapnarayan Mishra
प्रतापनारायण मिश्र
और अधिकप्रतापनारायण मिश्र
चार महीने हो चुके, ब्राह्मण की सुधि लेव।
गंगा माई जै करै, हमें दक्षिणा देव॥
जो बिनु माँगे दीजिए, दुहुँ दिसि होय अनंद।
तुम निश्चिंत हो हम करै, माँगन की सौगंद॥
तुर्त दान जौ करिय तो, होय महा कल्यान।
बहुत बकाये लाभ का, समुझ जाव जजमान॥
रूपराज की कगर पर, जितने होयँ निसान।
तिते वर्ष सुख सुजसयुत, जियत रहो जजमान॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 59)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : प्रतापनारायण मिश्र
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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