भजन कर हरि के चरण मन
bhajan kar hari ke charn man
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
Surykant Tripathi Nirala
भजन कर हरि के चरण मन
bhajan kar hari ke charn man
Surykant Tripathi Nirala
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
और अधिकसूर्यकांत त्रिपाठी निराला
भजन कर हरि के चरण, मन!
पार कर मायावरण, मन!
कलुष के कर से गिरे हैं
देह-क्रम तेरे फिरे हैं,
विपथ के रथ से उतरकर
बन शरण का उपकरण, मन!
अन्यथा है वन्य कारा
प्रबल पावस, मध्य धारा,
टूटते तन से पछड़कर
उखड़ जाएगा तरण, मन!
- पुस्तक : निराला संचयिता (पृष्ठ 156)
- संपादक : रमेशचंद्र शाह
- रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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