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दुर्बल

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एक राजा था,राजा का एक बेटा था। उसका नाम लेड़गा था। वह युवा था। एक दिन लेड़गा कहने लगा,'मैं शहर देखने के लिए जाता हूँ' और उसने पैसे लिए। बर्तन-भाँडे,कपड़े-लत्ते लिए। पैसों को घोड़े के ऊपर लटका दिया था। सोना-चाँदी घोड़े को पहना दिए थे। घोड़े पर सवार हुआ और चल पड़ा। दूसरे गाँव में गया और तालाब के किनारे ठहर गया। घोड़े से पानी पी लेने को कहा,'पिछवाड़े के रास्ते से पानी पी लो भर पेट खा लो और हिम्मत रखो। बहुत दूर जाना है।'ऐसा कहा और जिस शहर में सात भाई रहा करते थे,उसी शहर में जा पहुँचा लेड़गा।

वहाँ थे सात भाई। उन सातों भाइयों की पत्नियाँ उसी तालाब में पानी भरने के लिए गई थीं। उन्होंने देखा कि लेड़गा अपने घोड़े की पिछवाड़े के रास्ते पानी पिला रहा है। यह देख कर वे आपस में बातें करने लगीं,'यह तो बिल्कुल ही अज्ञानी है। घोड़े को उसके पिछवाड़े की ओर से पानी पिला रहा है। चलो तो,हम अपने पतियों को बताएँगी।'ऐसा कह वे पानी भर कर घर चली गईं। पानी की गगरियाँ रखीं और अपने पतियों को बताने लगीं,'बिल्कुल अज्ञानी व्यक्ति आया है। वह अपने घोड़े को पिछवाड़े से पानी पिला रहा है। सोना-चाँदी घोड़े पर टाँग रखे हैं,चलो तो,उसे ठगे।

सातों भाइयों ने सुना और आपस में कहने लगे,'चलो तो,चलो जल्दी जाकर 'देखें' और गए तालाब में। लेड़गा से कहने लगे,आप हमारे घर को कैसे भूल गए,दामाद जी? यहाँ क्यों डेरा बना रखा है?

लेड़गा ने सुना और 'अच्छा,चलो' कह सातों भाइयों के साथ चल पड़ा। भोजन रांधा और खाया गया। लेड़गा सारा दिन वहीं रह गया। रात होने पर सब सो गए। सातों भाई और लेगा एक कमरे में सोये थे। सातों देवरानी-जेठानियाँ अपने-अपने कमरों में सोई थीं। सातों भाई लेड़गा को ठगने के विषय में बतियाने लगे। वे विचार-विमर्श करने लगे। उसे किस तरह ठगा जाए, वे सोचने लगे। फिर सातों भाइयों ने कुछ विचार किया और लेड़गा से कहने लगे, हमारी बहन और आपका विवाह हो रहा था,दामाद जी। उसी समय बहुत ज़ोरों की बरसात हुई। वह लगन का दिन था। बरसात होने पर आप कहीं और भाग गए और हमारी बहन कहीं और छिप गई। यह बात यदि सच नहीं है तो,आप हमें एक हजार रुपए दें।

लेड़गा कहने लगा,सच है जी,सच है।

इस तरह तरह-तरह की बातें करते रहे सातों भाई किंतु लेड़गा को नहीं ठग सके। सवेरा हो गया। सवेरा होने पर वे अपनी पत्नियों के पास गए। पत्नियाँ पूछने लगीं,अच्छा,कितने पैसे ठगे आप लोगों ने?

सातों भाई कहने लगे,कहाँ के पैसे ठग पाते?

इस तरह लेड़गा दो-एक दिनों तक उन्हीं के घर में रह गया। फिर एक दिन वह कहने लगा, अच्छा जी! अब आप अपनी बहन मेरे हवालेकर दीजिए। हम भी अपने घर जाएँगे।

तब सातों भाइयों ने अपनी बहन को विदा किया। लेडगा कन्या को अपने घर ले गया। दोनों बहुत आनंदपूर्वक जीवन यापन करने लगे। इधर सातों भाइयों की पत्नियाँ सातों भाइयों से कहने लगीं,आप लोगों को अकल कैसे नहीं है! बिना ब्याहे ही अपनी बहन लेड़गा को कैसे सौंप दी?

सातों भाइयों ने सुना और कहने लगे,चलो तो,लेड़गा को मार कर हम अपनी बहन को वापस ले आयेंगे। ऐसा कह वे लेड़गा के घर की ओर चले। इधर लेड़गा मन ही मन जान गया और अपनी पत्नी से कहने लगा,सुनो तो! तुम्हारे भाई मुझे मार कर तुम्हें ले वापस ले जाने के लिए रहे हैं। तुम पाँच रुपए लेकर जाओ और उसके छुट्टे करवा लाओ।

ऐसा कहने पर उसकी पत्नी ने पाँच रुपए लिए और उसके छुट्टे लाने के लिए चली गई, थोड़ी देर में वह छुट्टे लेकर आई। तब लेड़गा ने सारे छुट्टे लिए और एक पोटली में बाँध कर उसे बेर के पेड़ पर टाँग दिए। फिर अपनी पत्नी से कहने लगा,तुम्हारे भाई आएँ तो कहना,'क्या करें,घर में एक भी पैसे नहीं हैं।' फिर तुम्हीं कहना,'जाकर ज़रा बेर के पेड़ को हिलाओ तो भला।'

यह सुन कर उसकी पत्नी ने हामी भरी। थोड़ी ही देर में सातों भाई पहुँचे। तब बहन ने अपने सातों भाइयों को पाँव धोने के लिए पानी दिया। भाइयों ने पाँव धोए और घर के भीतर बैठ गए। उसी समय वह युवती लेड़गा से कहने लगी,सुनिए जी! घर में एक भी रुपए-पैसे नहीं हैं। दादा आए हैं,क्या करें? जाइए तो भला,ज़रा बेर के पेड़ को हिला कर देखिए। शायद थोड़े-बहुत पैसे गिरें।

यह सुन कर लेड़गा गया। बेर के पेड़ पर चढ़ा और हिलाने लगा। पेड़ की शाखों को हिलाने पर पैसे गिर पड़े। तब लेड़गा ने वे पैसे समेटे और घर में कर कहने लगा,यह लो, इतने ही थे। पाँच रुपए के आसपास होंगे शायद।

तब युवती कहने लगी,अभी कुछ ही दिनों पहले तो आपने पेड़ को हिलाया था। भला कितने सारे रुपए फलेंगे!

तब पाँच रुपयों से कुछ सामग्री लाई गई, भोजन रांधा गया। फिर खा-पी कर सब सो गए। तब छहों बड़े भाई सबसे छोटे भाई से कहने लगे,तुम रूठे रहो। 'किसलिए रुठे हो?'कह पूछने पर हम कहेंगे कि वह बेर के पेड़ के लिए रूठा है। तब छोटे भाई ने हामी भरी और रूठने का अभिनय करने लगा,वह किसी से भी बातें नहीं करता।

इतने में लेड़गा पूछने लगा,कैसे जी,छोटे साले! आप बातें नहीं कर रहे हैं,नाराज़ हो गए हैं क्या?

तब छहों भाई कहने लगे,आपके बेर के पेड़ के लिए रूठा हुआ है, दामाद जी।

लेड़गा बोला,अच्छा जी। उसके लिए भला आप क्यों रूठे हैं! सवेरा होने पर मैं जड़ सहित खोद दूँगा। आप उसे ले जाना उठा कर।

उसके ऐसा कहने पर सातों भाई प्रसन्न होकर सारी रात बड़े मजे से सो गए। सवेरे उठे, दातून आदि से निवृत्त हुए। फिर लेड़गा ने बेर का पेड़ खोद दिया। सातों भाई उसे उठा कर ले चले। घर में ले जाकर रोप दिया। अब वे कहीं भी कमाने नहीं जाते। उनकी पत्नियाँ उनसे कहने लगीं,आप लोग कमाने क्यों नहीं जाते कहीं?

सातों भाई कहने लगे,हम कमाने क्यों जाएँगे भला? ऐसा कह वे काम-धाम की ओर ध्यान ही नहीं देते। घर में ही बैठे रहते। कुछ ही दिनों बाद उस गाँव का बाज़ार भरा। सातों देवरानी-जेठानियों ने भोजन रांधा,सारे काम किए। स्नानादि से निवृत्त हुईं,कपड़े-लत्ते धोए। भोजन किया। साज-श्रृंगार किया,बाज़ार जाने के लिए टोकरे हाथों में लिए और कहने लगीं, लाओ,हमें पैसे दो। हम बाज़ार जाएँगे।

यह कहने पर सातों भाई आपस में एक-दूसरे से कहने लगे,अरे कोई भी एक व्यक्ति जाओ और बेर के पेड़ को हिलाओ।

तब उनमें से एक भाई बेर के पेड़ पर चढ़ गया और छह भाई पेड़ के नीचे खड़े रहे। पेड़ के ऊपर चढ़ा भाई कई शाखों को हिला कर देखने लगा किंतु वहाँ से पैसे कैसे गिरते भला? सातों भाई खिसिया गए और खाली हाथ लौटे। उनकी पत्नियाँ पूछने लगीं,पैसे कहाँ हैं?

सातों भाई बोले,वहाँ कहाँ से पैसे रहते भला?

उनकी पत्नियाँ बोलीं,आप लोगों को कैसे अकल नहीं है! बेर के पेड़ पर कभी पैसे फले हैं? इसी कमअक्ली के चलते आप लोगों ने अपनी बहन उस लेड़गा के हवालेकर दी,न?

सातों भाइयों ने सुना और 'चलो तो,लेड़गा को मार कर नोनी को वापस ले आएँगे' ऐसा कहकर लेड़गा को मारने के लिए चले। उधर लेड़गा फिर से जान गया। भगवान ने उसे बताया। तब लेड़गा अपनी पत्नी से कहने लगा,अब तुम्हारे भाई मुझे नहीं छोड़ेंगे। वे मुझे मार डालेंगे। जाओ तो,पाँच रुपए की माँगुर मछली ले आओ।

उसकी पत्नी ने पाँच रुपए लिए और माँगुर मछली लेने चली गई। लेकर आने पर लेड़गा ने उससे कहा कि वह सारी मछलियों को द्वार पर ही डाल दे। फिर वह कहने लगा,मैं बंसी खेलने के लिए जा रहा हूँ। मैं वहाँ बंसी खेलूँगा और कहूँगा 'सर सट् घर में जाकर फटफट। तब उस समय तुम लाठी उठा कर मछलियों को यहाँ मारती रहना। ऐसा कह लेड़गा बंसी खेलने के लिए तालाब चला गया। थोड़ी देर बाद सातों भाई आते दिखे। लेड़गा उनके रास्ते में ही बंसी खेल रहा था। सातों भाई पहुँचे। छोटे भाई ने लेड़गा को देखा और कहने लगा, वह देखो,दादा,लेड़गा बंसी खेल रहा है। तब सातों भाई उसके पास गए। लेड़गा बंसी खेलता जाता और कहता जाता,सर्र सट् घर में जाकर फटफट।

सातों भाई आपस में कहने लगे,'इस लेड़गा के पास इतनी बुद्धि है कि नदी की मछलियाँ उसके घर में जाकर फड़फड़ाती हैं!'

लेड़गा बंसी खेलते थक गया और कहने लगा,चलिए सुसरा। इतनी देर तक बंसी खेल रहे हो कह कर आपकी बहन मुझे डाँटेगी।

सारे लोग घर गए। लेड़गा की पत्नी हाथ में एक लाठी लेकर मछलियों को मार रही थी। सातों भाइयों ने देखा और कहने लगे,लेड़गा ने तो सच ही कहा। हमारी बहन यहाँ पर मछलियों को मार रही है। नदी की मछलियाँ घर में गईं!

उनकी बहन ने मछलियों का मारा,काटा और रांधा। सबने भोजन किया और सो गए। छोटा भाई फिर से रूठ गया। वह अपने छहों भाइयों से कहने लगा,मैं बंसी के लिए रूठा रहूँगा। हम बंसी माँग कर ले जाएँगे।

ऐसा कह वह भाई चुप हो गया,किसी से भी बातें नहीं करता। तब लेड़गा कहने लगा,आप किसलिए चुप लगा गए हैं,सुसरा?

अरे भाई! वह आपकी बंसी के लिए रूठा बैठा है। छहों भाई बोले।

अरे भला उसके लिए क्यों रूठे हैं? सवेरा होने पर बंसी भी ले जाना। लेड़गा ने कहा।

तब सभी लोग सो गए। सवेरा होने पर दातून आदि से सभी निवृत्त हुए। बंसी ली और अपने घर चले गए। सातों देवरानी-जेठानियों ने उन्हें आते हुए देखा और आपस में बातें करने लगीं,'नोनी को लाने के लिए गए थे किंतु ये लोग बंसी लेकर कैसे रहे हैं?

सातों भाई पहुँचे और बंसी एक किनारे रख कर कहने लगे,अब ज़रा जल्दी से भोजन रांधो।

तब देवरानी-जेठानियों ने झटपट भोजन रांधा। सातों भाइयों ने भोजन किया और अपनी पत्नियों से बोले,तुम सभी लकड़ी लेकर देहरी पर खड़ी रहो। हम लोग मछली पकड़ने जा रहे हैं। ऐसा कह वे नदी में गए। वहाँ जाकर बंसी खेलते हुए कहने लगे,सर्रसट् घर में जाकर फटफट।

सवेरे के गए हुए थे,साँझ हो गई। उन्हें कैसे मछली मिलती भला! मछलियाँ घर में कैसे आतीं? उनकी पत्नियाँ लकड़ी लेकर द्वार पर बैठी हुई थीं। थोड़ी देर में सातों भाई नदी से लौटे और अपनी पत्नियों से पूछने लगे,कैसे,तुम लोग मछलियाँ कैसे नहीं मार रही हो?

पत्नियाँ कहने लगीं,आपको लज्जा नहीं आती? नदी की मछलियाँ भला घर में कैसे आएँगी? आप लोगों को थोड़ी भी तो बुद्धि रहती! लेड़गा की बातों में कैसे गए?

फिर उन लोगों ने भोजन रांधा। खा-पी कर सो गए। सवेरा होने पर सातों भाई मारे ग़ुस्से के कहने लगे,यह लेड़गा हमें दो बार ठग चुका है। आज तो उसे किसी किसी तरह मार ही डालेंगे। यों कह सातों भाई लेड़गा के घर गए। उधर लेड़गा अपनी पत्नी से कहने लगा, जाओ,चार आने का रंग लेकर आना।

यह सुन कर उसकी पत्नी चार आने लेकर रंग ख़रीदने गई। रंग ला कर एक छोटी हंडिया में घोला। तब लेड़गा कहने लगा,तुम्हारे भाई आयें तो उनसे कहना कि तुम लोग साँझ-सवेरे मेरे ही घर में क्यों चले आते हो? तभी मैं तुम्हें बेंत से मारूँगा। तब तुम इसी रंग की हंडिया के ऊपर गिर जाना। थोड़ी देर बाद मैं इस बेंत को तुम्हारे शरीर से छुआ दूँगा तब तुम उठ कर बैठ जाना। यह सुन कर उसकी पत्नी ने हामी भरी। थोड़ी देर बाद सातों भाई लेड़गा के घर पहुँचे। उनके आने पर वह कहने लगी,आप लोग दादा साँझ-सवेरे हमारे ही घर चले आते हो।

यह सुन कर लेड़गा बोला,इसमें तुम्हारा क्या जाता है? मैं तो कमाता-खिलाता हूँ और उसने उसे बेंत से मारा। मारने पर उसकी पत्नी उसी रंग वाली इंडिया पर जा गिरी। हंडिया फूट गई। एक अँधेरे कोने में रखी हुई थी इंडिया। फूटने पर इंडिया में रखा लाल रंग बह कर उसकी देह में लगा। तब थोड़ी देर के बाद लेड़गा अपनी पत्नी के पास पहुँचा और बेंत से उसके शरीर को छुआ। इस पर उसकी पत्नी उठ कर बैठ गई। भोजन रांधा,सब लोगों ने भोजन किया। छोटा भाई फिर से रूठ गया उस बेंत के लिए,वह रोने लगा। तब लेड़गा उसके पास आया और पूछने लगा,क्या हो गया,सुसरा? अब फिर से क्यों रोने लगे?

तब छहों बाई बोलने लगे,देखो भाई लेड़गा। यह आपकी बेंत के लिए रूठा हुआ है और रो रहा है।

लेड़गा बोला,अच्छा जी,आप बेंत भी ले जाना। मैं दे दूँगा।

रात में सब सो गए। सवेरे उठे और दातून आदि से निवृत्त हुए। बेंत लेकर घर चले गए। उन्हें देख कर उनकी पत्नियाँ कहने लगीं,एक बार गए और बेर का पेड़ लेकर आए। दूसरी बार गए और बंसी ले आए,और अब बेंत लेकर रहे हैं। ऐसा कह वे उन सातों भाइयों को गरियाने लगीं,तभी तो अपनी बिन ब्याही बहन उसे दे दी।

उनका गरियाना सुन कर सातों भाइयों ने उन्हें मार डाला। फिर थोड़ी देर बाद बेंत से उनके शरीर का स्पर्श कराया। भला वे कैसे जीतीं? क्या करते भला सातों भाई! सातों देवरानी-जेठानियों के क्रिया-कर्म किए। स्नानादि कर्म से निवृत्त हुए और घर पर ही रहने लगे।

उधर एक दिन लेड़गा अपनी पत्नी से कहने लगा,मैं गाँव देखने के लिए जा रहा हूँ। ऐसा कह उसने एक बोरे में राख भरी और उसे लेकर चल पड़ा दूसरे गाँव। रास्ते में एक व्यक्ति हीरे-मोती से भरा बोरा घोड़े पर लाद कर चला रहा था। बोरे के पीछे उसने अपनी माँ को बिठा रखा था। उसका घोड़ा थक गया था। वह व्यक्ति लेड़गा को देख कर कहने लगा,मेरी माँ को थोड़ी देर अपने घोड़े पर बिठा लो,न बाबू।

यह सुन कर लेड़गा ने उसकी माँ को अपने घोड़े पर बिठा लिया। चलते-चलते वे बहुत दूर चले गए। वह व्यक्ति कहीं और जा रहा था और लेडेगा कहीं और। कुछ दूर जाने के बाद उस व्यक्ति ने कहा,मेरी माँ को उतार दो,बाबू। हम इस ओर से जाएँगे।

तब लेड़गा ने 'ज़रा देखूँ तो' कहा तो और अपने बोरे को देखने लगा। बोरे में राख जस की तस थी। बुढ़िया उसी राख वाले बोरे के ऊपर बैठी थी। तब लेड़गा उस व्यक्ति से कहने लगा,तुम्हारी माँ ने मेरे हीरा-मोती के बोरे पर वायु उत्सर्जित कर दिया है। बोरे में हीरा-मोती,सोना-चाँदी भरे थे। सारे के सारे हीरा-मोती,सोना-चाँदी राख हो गए। तुम मेरे हीरे-मोती,सोना-चाँदी वापस करो और यह राख ले लो।

ऐसा कहने पर उस व्यक्ति ने अपने सारे हीरे-मोती,सोना-चाँदी लेड़गा को दे दिए और लेड़गा की राख ले ली। लेड़गा ने सारे हीरे-मोती,सोना-चाँदी लिए और प्रसन्नतापूर्वक अपने घर चला। घर पहुँच कर अपनी पत्नी से कहने लगा,तुम जाओ तो अपने भाइयों के घर से पयली-सोली माँग लाना।

उसकी पत्नी गई अपने भाइयों के घर और वहाँ से पयली-सोली माँग लायी। लेड़गा ने हीरे-मोती,सोना-चाँदी नापे। नापने पर पंद्रह पयली दो सोली हुए। लेड़गा ने अपनी पत्नी से पयली-सोली वापस पहुँचा आने को कहा। उसने कहा,तुम्हारे भाई पूछें तो बतलाना कि मेरे पति ने घर को जला कर उसकी राख बेची और उसी से हीरे-मोती लाए। पंद्रह पयली दो सोली हीरे-मोती मिले।

उसकी पत्नी पयली-सोली लेकर अपने भाइयों के घर गई। उसके भाई पूछने लगे,कौन सी चीज़ नापी,नोनी तुम लोगों ने?

उसने कहा,एक घर को जला कर उसकी राख बेची। उसी राख की कीमत पंद्रह पयली दो सोली हीरे-मोती के रूप में मिली। ऐसा कह वह अपने घर गई। बहन के जाने पर वे सातों भाई विचार करने लगे कि जब लेड़गा ने एक घर जला कर उसकी राख पंद्रह पयली दो सोली हीरे-मोतियों में बेची तो उनके तो सात घर हैं। यह सोच कर उन सातों भाइयों ने अपने सातों घर जला दिए और उन घरों की राख बोरों में भर कर बेचने ले चले। शहर पहुँच कर 'राख ले लो','राख ले लो' कह घूमने लगे। तभी एक धोबी ने उन्हें पुकारा। वे धोबी के पास गए। धोबी ने पूछा,कितने में दोगे?

वे कहने लगे,हमारे दामाद ने पंद्रह पयली दो सोली में एक घर की राख बेची है। हमें भी उतनी ही कीमत देने पर हम राख दे देंगे।

धोबी हँसने लगा और बोला,अरे कमअक्लों! राख के बदले भला कोई हीरे-मोती देगा? चार आने में देना हो तो यह लो चार आने। देना हो दे दो राख।

क्या करते भला! चार-चार आने में राख बेच दी और मुँह लटका कर घर वापस गए। घर जलाए आठ-पंद्रह दिन बीत गए। एक दिन की बात है। लेड़गा फिर से घोड़े पर सवार हो गया और कहने लगा,मैं राज्य देखने के लिए जा रहा हूँ। यह कह गाय की खाल लेकर घूमने चला,रास्ते में रात हो गई। तब 'किसके घर जाऊँ?' सोचता एक पेड़ पर चढ़ गया। उसी समय चार चोर चोरी के रुपए लेकर उसी पेड़ के नीचे बैठे और बंटवारा करने लगे। तभी लेड़गा ने गाय की खाल उनके ऊपर गिरा दी। चोर डर गए और कोई हमें पकड़ने रहा है, ऐसा कहते वहाँ से भाग खड़े हुए। लेड़गा पेड़ पर से उतरा और सारे रुपए-पैसे लेकर अपने घर चला गया। पत्नी से कहने लगा,जाओ तो अपने भाइयों के घर से पयली-सोली माँग लाना।

उसकी पत्नी पयली-सोली माँगने के लिए अपने भाइयों के घर गई और माँग लाई। दोनों नें मिल कर रुपए-पैसे नापे। तीन पयली दो सोली रुपए हुए। फिर उसकी पत्नी पयली-सोली अपने भाइयों के घर पहुँचाने लगी। उसके भाइयों ने पूछा कि उन लोगों ने इस बार क्या नापा? वह बोली,एक गाय को मार कर उसकी खाल बेच आए हैं, वही पैसे नाप रहे थे। तीन पयली दो सोली रुपए हुए।

बहन के जाने पर सातों भाई आपस में विचार करने लगे कि हमारे पास तो चौदह बैल हैं। उसने तो एक ही गाय मार कर उसकी खाल बेची है। यों सोच-विचार कर उन लोगों ने अपने चौदह बैल मारे और उनकी खाल लेकर बेचने चले। 'खाल लो,खाल लो' कहते शहर में घूमने लगे। तब लोगों ने उनसे पूछा कि वे खाल कितने में बेचेंगे? सातों भाई बोले,एक खाल की कीमत तीन पयली दो सोली रुपए लेकर गए हैं हमारे दामाद। हमें भी उतने ही रुपए देने पर हम खाल देंगे।

उनकी बातें सुन कर सभी हँस पड़े,एक खाल के उतने सारे रुपए कौन तुम्हें देगा भला? चार आने में एक खाल देना हो हम अभी ख़रीद लेंगे।

तब चार-चार आने में खालें बेच कर वे सातों भाई अपने घर चले गए। सब आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि अब तो लेड़गा को जीवित नहीं छोड़ेंगे। उसे मार ही डालेंगे। ऐसा सोच-विचार कर सातों भाई लेड़गा के घर पहुँचे। लेड़गा अपने घर में बैठा हुआ था। सातों भाइयों ने लेड़गा को चारों ओर से घेर कर पकड़ लिया और एक झापी में भर कर बाँध दिया और उसे नदी में फेंकने के लिए ले चले। नदी के पास पहुँच कर उन्होंने झापी एक जगह रख दी और नदी के भीतर उतर गए नदी की गहराई मापने के लिए। वहीं पास में एक चरवाहा गाय-बैलों को चरा रहा था। लेड़गा ने उस चरवाहे को आवाज़ दी,आओ बाबू,आओ।

चरवाहा उसकी पुकार सुन कर उसके पास पहुँचा लेड़गा उस चरवाहे से कहने लगा,देखो तो बाबू। मैं राजा नहीं बनूँगा कहता हूँ किंतु ये लोग नहीं मानते। मुझे ज़बरदस्ती राजा बनाने के लिए ले जा रहे हैं। चाहो तो तुम बन जाओ राजा। तुम तो राजा जैसे दिखते भी हो।

यह सुन कर,अच्छा मैं राजा बनूँगा,कहा चरवाहे ने। तब लेड़गा उससे बोला,ऐसा है तो, तुम अपने पहने कपड़े मुझे दे दो और मेरे कपड़े तुम पहन लो। इस तरह दोनों ने अपने-अपने कपड़े एक-दूसरे को दे दिए। लेड़गा ने चरवाहे को झापी के भीतर भर दिया और स्वयं उसकी लाठी लेकर गाय-बैलों को चराने लगा। तभी सातों भाई नदी की गहराई माप कर वापस आए और झापी उठा कर नदी में फेंक दी। फिर वे लेड़गा के घर गए। उधर लेड़गा सारा दिन गाय-बैलों को चराता रहा और साँझ होने पर उन्हें हाँक कर घर गया। सातों भाई लेड़गा के घर में ही थे। उन्होंने लेड़गा को गाय-बैलों के साथ आता देखा। वे लेड़गा से कहने लगे,क्यों जी! तुम्हें तो हमने नदी में फेंक दिया था,न? तुम वापस कैसे गए?

लेड़गा बोला,आप लोगों ने नदी में फेंका ज़रूर किंतु थोड़ी कम गहराई में फेंका। और दूर फेंका होता अधिक गहराई में तो इनसे भी अधिक गाय-बैल लेकर आता।

सातों भाइयों ने यह सुन कर कहा,ऐसा है तो हम सबको नदी में फेंक दो।

यह सुन कर लेड़गा पारदी के घर गया और सात झापियाँ बनवा लाया। उन झापियों में सभी भाइयों को डाल कर उन्हें नदी में फेंक दिया और अपने घर चला गया। दोनों पति-पत्नी मज़े से जीवन-यापन करने लगे। ऊधो का लेना,न माधो का देना। सातों भाइयों के प्राण गए।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 37)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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