प्यार के बाज़ार में
गगन तलरेजा
08 नवम्बर 2025
मित्र को प्यार हो गया है—सच्चा प्यार। पाकीज़ा मुहब्बत। ट्रू लव टाइप मामला लग रहा है। जबसे वह प्रेम की गिरफ़्त में आए हैं, तभी से खोये-खोये से रहते हैं। उनकी रातें भी अब आँखों में गुज़रती हैं। इस चक्कर में उनकी आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़ गए हैं, लेकिन चूँकि मित्र प्रेम में हैं तो उन्हें यह काले गड्ढे भी गुलाबी लगते हैं। प्रेम रोग का ऐसा भयानक केस है कि अब उन्हें कुछ दिखाई-सुनाई भी नहीं देता। सीने में जो दिल फ़िट है, वह अब केवल उसी की सुनते हैं। दिमाग़ को टाटा-बाय-बाय कह दिया है। सनम से मिलने की इच्छा दिल में हर घड़ी अकुलाती रहती है। मित्र का दिल है समझता ही नहीं कि सनम हर समय उपलब्ध नहीं हो सकता। हो सकता है कि सनम जो है, वह नहा रहा हो? या फिर सनम का पेट सुबह से ही पिरा रहा हो? अथवा यह भी हो सकता है कि सनम के घरवालों को उसके सनम होने का पता लग गया हो और वह उनसे कुटने में व्यस्त हो? लेकिन मित्र को इन सबसे क्या। वह तो बस ‘सनम’, ‘महबूबा’, ‘दिलबर’ आदि की रट लगाते हुए अपनी प्रियतमा को पुकारते रहते हैं।
“यार जानते हो, वह जब बात करती है तो यों लगता है मानो कोयली कुहू-कुहू कर रही है। और जब हँसती है तब... तब तो पूछो ही मत यार... मानो किसी संगीतकार ने अपना तानपुरा उठाकर कोई प्रेम राग छेड़ दिया हो। दिन ही बन जाता है! और उसकी चाल तो किसी हथिनी या हिरणी को भी मात दे-दे। और यार क्या क़ातिल निगाह है उसकी! जिसे देख ले, वह घायल हो जाए। निगाहों से इतने तीर छोड़ती है कि आदमी बाणशय्या पर पड़े-पड़े भीष्म पितामह टाइप हो जाता है। अपना भी तो यही हाल हो गया है भाई!”—दीवाने से होकर यही सब कहते रहते हैं मित्र आजकल।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उन्हें पहले प्रेम नहीं हुआ। पहले भी हुआ है। बहुत बार हुआ है। लगभग रोज़ ही हो जाता है। प्रेम के बाज़ार में यों भी कोई कठिन है क्या प्रेम मिलना? बस ब्रेड पर मक्खन लगे चाक़ू की अदा से उँगलियों को स्क्रीन पर फिराते रहिए और करते रहिए प्रेम। प्रेम के बाज़ार में मित्र स्वयं ही ख़रीददार भी हैं और मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार भी! रोज़ ही नयी ‘डेट’ रहती है। रोज़ ही ‘फ्रेश’ प्रेम होता है।
लेकिन इस बार सुनते हैं कि मामला थोड़ा अलग बैठ गया है। जान-वान दे सकें, कुछ ऐसी सेटिंग हो गई है। “ऐसा क्यों है?”—मैंने पूछा तो वह चहकते हुए कहने लगे, “यार तुम्हारी भाभी के साथ कुछ ‘सोल कनेक्शन’ लगता है अपना। वी आर वैरी ‘कम्पेटिबल’ विद ईच अदर। एक ‘सेंस ऑफ़ स्पेस’ भी है उसको। बाढ़ के पानी की तरह मेरी निजी ज़िंदगी में हर वक़्त घुसी नहीं चली आती वह। खुल के साँस ले पाता हूँ मैं। पायजामे जैसा कुछ इंतज़ाम समझो तुम कि जिसे पहनो तो हवा की आवाजाही ‘ईज़िली’ बनी रह सके। हर वक़्त ठंडा-ठंडा, कूल-कूल सा लगता रहे। काफ़ी ‘अंडरस्टैंडिंग’ लड़की है वह। अपने को तो ट्रू लव ही मिल गया है अबकी बार!”
मित्र का हाल प्रेम में इस क़दर बेहाल हो चुका है कि अब उन्हें सनम की गोद में मरने के सपने तक आने लगे हैं। सपने में वह और उनके सनम दोनों ही बूढ़े हो चुके हैं और वह अपनी सनम की गोद में काफ़ी देर से पड़े हुए मर रहे हैं। महबूबा बेचारी पोपली हो चुकी है। उसकी चाल अब उस बूढ़ी हथिनी जैसी हो चुकी है, जिसे घुटनों में गठिया की शिकायत है। महबूबा की आँखों के बाण अब निशाने पर नहीं लगते क्योंकि उसे मोतियाबिंद की शिकायत भी है। वह हँसती है तो संगीत की जगह खाँसियों का राग चल पड़ता है। ‘कुहू-कुहू’ की जगह ‘उहू-उहू’ ने ले ली है। मित्र और प्रेमिका के बीच सपने में अंतिम बार प्रेमभरी बातों का आदान-प्रदान चल रहा है। प्रेमिका विलाप कर रही है। वह दुखी है कि मित्र के जीवन की अंतिम बेला इतनी जल्दी आ गई। वह इस बात से तो और भी अधिक दुखी है कि इनके चले जाने के बाद उसे इस उम्र में फिर ऑनलाइन डेटिंग ऐप पर नया प्रेम ढूँढ़ना पड़ेगा। प्रेमी अपनी प्रेमिका का दर्द समझता है। वह उसकी जगह होता तो वह भी यही करता। दोनों रो पड़ते हैं और इतना रोते हैं कि प्रेमी की नींद खुल जाती है और सपना टूट जाता है।
इसी तरह के सपने देखते हुए मित्र प्रेम की गलियों से गुज़र रहे थे कि तभी एक दिन मुझे पता चला कि सनम और मित्र का ‘ब्रेकअप’ हो गया। अब मित्र को किसी दूसरी कन्या से ट्रू लव हो गया है। मैंने जब मित्र से पूछा तो वह बताने लगे कि अब यह नयी महबूबा ही है उनकी ज़िंदगी। वही अब उनकी लाइफ़ है। मैंने जब आश्चर्य से पूछा—“और पुराना सनम? उसका क्या?” तो मित्र कहने लगे, “अरे यार वो तो अब ‘क्लोज्ड चैप्टर’ ही समझो तुम। शी वॉस नॉट दी वन!”
“पर मित्र तुमको तो सच्चा प्यार हुआ था?”—मैंने पूछा तो बालों में अदा से हाथ फिराते हुए मित्र बोले, “ब्रो, तुम तो मुझे जानते ही हो। प्यार तो अपन हर बार ही सच्चा करते हैं। लेकिन उसके साथ समय बिताकर मुझे लगने लगा था कि ज़िंदगी को लेकर हमारी ‘एप्रोच’ काफ़ी अलग है। स्लोली वी स्टार्टेड ग्रोइंग अपार्ट, यू नो। इसलिए मुझे लगा कि वहाँ टाइम बर्बाद करने से क्या ही फ़ायदा? तो मैंने सोचा कि लाइफ में ‘मूव ऑन’ कर लेना चाहिए। लेकिन मेरी नयी महबूबा, ब्रो शी इस सो अमेजिंग! कितनी समझदार है। कितनी ‘क्यूट’ है। मुझे लगता है कि वी माइट हैव ए फ़्यूचर टुगेदर। अब तो इसी के साथ जीवन और इसी के साथ मृत्यु।”
मित्र का प्रेम जीवन ऐसी फ़िल्म की तरह जिस में हर सीन के साथ नायिका बदल जाती है लेकिन नायक को इस बात से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। इस चित्रपटल पर फिर से नई नायिका का आगमन हो चुका है। नई महबूबा मिलने के बाद मित्र के चेहरे की ज्योति देखते ही बनती है। कितने ख़ुश हैं मित्र। उन्हें फिर से अपना फ़्यूचर सुहाना दिखने लगा है। जीने-मरने के ख़्वाब नए सिरे से आने लगे हैं। उनको फिर से सच्चा प्रेम हो गया है। और हो भी क्यों ना? प्यार के बाज़ार में त्वरित प्रेम इतने सस्ते में जो उपलब्ध है!
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बेला पॉपुलर
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