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बैंगन का पौधा और लोमड़ी

baingan ka paudha aur lomDi

एक गाँव में एक औरत रहती थी। उसने एक मुर्गी पाल रखी थी। औरत ने सोचा कि आँगन में बैंगन का एक पौधा लगा दिया जाए तो उसके नीचे बैठकर मुर्गी सुस्ता लिया करेगी। औरत ने बैंगन का पौधा लगा दिया। इस बीच मुर्गी ने पाँच चूज़ों को जन्म दिया। चूज़े भी बैंगन के पौधे के नीचे खेलते रहते। बैंगन के पौधे को यह देखकर बड़ा अच्छा लगता।

पास के जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। एक दिन लोमड़ी घूमती हुई औरत के घर के पास पहुँची। उसने चूज़ों को देखा तो उसके मुँह में पानी गया। वह चूज़ों को पकड़ने को बढ़ी लेकिन मुर्गी ने चोंच मार-मारकर लोमड़ी को भगा दिया।

इधर बैंगन के पौधे में एक फूल खिला। चटख बैंगनी रंग का। कुछ दिन बाद वह फूल फल में बदल गया। धीरे-धीरे फल बढ़ने लगा। फल इतना बढ़ा, इतना बढ़ा कि बहुत बड़ा हो गया। औरत ने सोचा कि एक फल खाकर मैं क्या करूँगी? इससे तो यह फल पौधे में लगा हुआ सुंदर दिखता है। उसने फल को नहीं तोड़ा। फल बढ़ता गया।

एक दिन बैंगन के पौधे ने मुर्गी से कहा, ‘मुर्गी बहन, अब तुम मेरे नीचे मत बैठा करो। मेरा फल बहुत बड़ा हो गया है। यदि यह किसी दिन तुम्हारे ऊपर गिर गया तो अनर्थ हो जाएगा।’

मुर्गी ने सोचा कि एक फल के गिरने से मैं दब के मर थोड़े ही जाऊँगी? और वह बैंगन के पौधे के नीचे बैठती रही। फिर एक दिन वही हुआ जिसका बैंगन के पौधे को डर था। बैंगन का फल मुर्गी पर गिरा और मुर्गी दब कर मर गई।

मुर्गी के मरने से उसके चूज़े असुरक्षित हो गए। लोमड़ी तो पहले से ही ताक में बैठी थी। एक रात लोमड़ी चूज़ों को खाने आई लेकिन उसे एक भी चूज़ा नहीं दिखा। वह निराश होकर लौट गई। दूसरे दिन वह वेश बदल कर आई।

‘बच्चों, मैं तुम्हारी माँ की सहेली हूँ। तुम्हारी माँ ने मरने से पहले मुझसे वादा लिया था कि में तुम लोगों का ध्यान रखूँगी। तुम लोग मुझे बता दो कि तुम लोग रात को कहाँ सोते हो। ताकि मैं रात को भी तुम लोगों की देख-रेख कर सकूँ।’ लोमड़ी ने कहा।

भोले-भाले चूजों ने सच-सच बता दिया कि वे आँगन में बाँस की बड़ेरी पर सोते हैं। रात हुई तो लोमड़ी धमकी और वह सीधे बाँस की बड़ेरी के पास पहुँची। बड़ेरी पर चढ़कर उसने देखा तो वहाँ एक भी चूज़ा नहीं था। बल्कि बड़ेरी पुरानी और कमज़ोर हो चुकी थी अत: लोमड़ी के भार से टूट गई लोमड़ी भरभरा कर नीचे गिरी। बड़ेरी गिरने की आवाज़ से औरत जाग गई। उसने लोमड़ी को देखा तो लकड़ी उठाकर दे मारा। लोमड़ी ‘हाय-हाय’ करती हुई भाग खड़ी हुई।

लोमड़ी को लगा कि यह कैसा चक्कर है? चूज़े झूठ नहीं बोल सकते फिर वे बड़ेरी पर क्यों नहीं मिले? वह फिर से वेश बदल कर चूज़ों के पास पहुँची और पूछा कि तुम लोग कहाँ थे?

‘हमें बैंगन मामा ने समझाया है कि हर रात को जगह बदल-बदल कर सोना चाहिए। कल हम टोकरी के नीचे छिप कर सो गए थे और आज तूमे (सूखे कुम्हड़े का खोल) में छिपकर सोएँगे।’ नादान चूज़ों ने भोलेपन से बता दिया।

रात होते ही लोमड़ी फिर आई और उसने तूमे में झाँककर देखा। उसमें सभी चूज़े मौज़ूद थे। यह देखकर लोमड़ी की बाँछें खिल गई। वह तूमे को उठाकर चल पड़ी। बैंगन के पौधे ने देखा तो वह चिंतित हो उठा। उसने लोमड़ी को पुकारा।

‘चिल्लाते क्यों हो? घर की मालकिन जाग जाएगी।’ लोमड़ी ने डाँटते हुए कहा।

‘तुम मेरे पास आकर मेरी बात सुनो नहीं तो मैं चिल्लाऊँगा।’ बैंगन के पौधे ने कहा।

‘बोलो क्या हैं?’ लोमड़ी झक मारती हुई बैंगन के पौधे के पास गई।

‘तुम्हें चूज़े खाने हैं तो पहले इस तूमे को किसी पत्थर पर ज़ोर से पटकना जिससे चूज़ों का स्वाद बढ़ जाएगा।’ बैंगन के पौधे ने कहा।

‘ठीक है। अब मैं चलती हूँ।’ लोमड़ी ने कहा और आँगन से बाहर निकल आई। बाहर आकर उसने सोचा कि अब चूज़ों को खा लिया जाए। तभी उसे बैंगन की सलाह याद आई। उसने एक अच्छा-सा पत्थर ढूँढ़ा और उस पर तूमे को ज़ोर से पटका। तूमा था गोल-गोल और चिकना। पत्थर से टकराते ही वह ज़ोर से उचटा और लोमड़ी के सिर से टकराया। तूमा टकराते ही लोमड़ी का सिर फट गया और वह मर गई। मुर्गी के चूज़े तूमे से सुरक्षित बाहर निकलकर वापस आँगन में गए। इसके बाद बैंगन का पौधा और चूज़े हँसी-ख़ुशी से साथ-साथ रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 198)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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