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तोते के शरीर में कुरुंबा

tote ke sharir mein kurumba

बरसों पहले की बात है। कुरुंबा आदिवासियों का एक ओझा हर रोज़ कोटा आदिवासियों के गाँवों में जाता, कोटा आदमियों को मारता और उनकी ख़ूबसूरत औरतों के साथ सोता था। कोटा आदिवासी उसे ख़त्म करना चाहते थे। पड़ोस के टोडा आदिवासी भी ओझा के ज़ुल्मों से दुखी थे। सो कोटाओं और टोडाओं के बड़े-बुज़ुर्ग सर जोड़कर बैठे और निर्णय किया कि जंगल के पास के रास्ते पर घात लगाकर काले कुरुंबा ओझा को जा दबोचें और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दें। उन्होंने वही किया।

जब ओझा उधर से निकला तो वे उस पर टूट पड़े और उसके टुकड़े करके अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिए। उन्होंने राहत की साँस ली कि चलो दुष्ट का खेल ख़त्म हुआ और वापस चल पड़े। वे कुछ ही क़दम चले होंगे कि अलग-अलग दिशाओं में फेंके ओझा के हाथ, पैर, सर, धड़ वापस जुड़ गए और वह उनका रास्ता रोककर खड़ा हो गया और अट्टहास करने लगा, “कोटाओ, टोडाओ, तो तुमने मुझे मार डाला, है न? देखो, मैं तुम्हारे सामने ज़िंदा खड़ा हूँ। साले निखट्टुओ, तुम सोचते हो मुझे इस तरह से मार सकते हो?” कोटा और टोडा भौंचक रह गए। सोचा, “कैसा चमत्कार है! ऐसे आदमी का हम क्या बिगाड़ सकते हैं!” और डर से काँपते हुए अपने घरों को भागे।

अगले कुछ हफ़्तों में कोटाओं और टोडाओं के अनेक गबरू जवान मारे गए। उनकी पत्नियाँ विधवा हो गईं। गाँव-गाँव में कोहराम मच गया।

ओझा बहुत ख़ुश था। वह बुदबुदाया, “मैंने अपना बदला ले लिया। ख़ून का बदला ख़ून!” और तुष्ट होकर ठहाका लगाया। वह हर रोज़ किसी गाँव को चुनता, उससे थोड़ी दूर एक खेत में खड़े होकर मंत्र जपता और जिस औरत के बारे में सोचता वह ख़ुद चलकर उसके पास आती और अपने को उसके हवाले कर देती।

लेकिन जैसा कि कहा जाता है, ओझा की पत्नी ओझा से इक्कीस होती है। काले कुरुंबा ओझा की पत्नी भी पति से ज़्यादा जादू-मंतर जानती थी। वह भी मंत्र उचारती और जिन सजीले बाँके जवानों को चाहती, अपने पास बुला लेती थी। वे उसके साथ सोते और साँझ को अपने-अपने घर लौट जाते। वह मर्दों को बुलाती और उसका पति औरतों को। गाँव वाले कहते, “इनके पाप का घड़ा एक दिन ज़रूर फूटेगा।” और वही हुआ।

एक दिन वह एक पहाड़ी अमरूद के पेड़ के नीचे बैठा अमरूद खा रहा था कि एक मैना पेड़ पर आकर बैठी और चीख़ने लगी। ओझा पक्षियों की बोली समझता था। सो उसने पूछा, “ए मैना, क्या बात है? तुम विलाप क्यों कर रही हो?”

मैना ने कहा, “अब क्या कहूँ! मेरा पति आज मर गया। वह मुझे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारा था। मेरा दिल टूट गया। रोऊँ नहीं तो क्या करूँ?”

ओझा पसीज गया। उसे मैना पर बहुत तरस आया। जैसे भी हो मैना का दुख दूर करने के लिए उसका दिल मचल गया। सो वह मृत तोते की काया में प्रवेश कर गया। अगले ही पल तोता जी उठा और पंख फड़फड़ाते हुए अपनी संगिनी की ओर उड़ा।

मैना ने ख़ुशी से उसे चूमा और बोली, “तुमने मेरे साथ छल किया। तुम मुझे परखना चाहते थे। तुमने मरने का स्वांग करके मुझे रुलाया और मेरा रोना देखते रहे, है न? तुम मर्दों का कोई भरोसा नहीं। तुम्हारा दिल पत्थर का होता है।” फिर दोनों एक-दूसरे का पीछा करते हुए उड़ गए। अचानक मैना ने पेड़ के नीचे पड़े काले ओझा के मुर्दा शरीर को देखा। उसका मुँह खुला था और हाथ-पैर फैले हुए थे।

कहने लगी, “बेचारा! अभी-अभी वह मुझसे बातें कर रहा था। मुझे रोते देखकर उसे मुझ पर दया आई। मुझे उसके लिए कुछ करना चाहिए।” यह कह कर उसने पेड़ का एक पत्ता चोंच में लिया और भगवान से प्रार्थना की, “अगर मैं सच्ची संगिनी हूँ तो मुझे एक वरदान दो! जैसे मैं अपने साथी के लिए रोई, वैसे ही इसकी पत्नी भी ख़ून के आँसू रो रही होगी। जब तक वह इसे ढूँढ़ नहीं लेती, कुत्ते, लक्कड़बग्घे, बाघ और दूसरे जंगली जानवरों से इसकी रक्षा करना। वे इसे छू भी पाएँ! जैसे यह अभी पड़ा है, वैसे ही पड़ा रहे।” प्रार्थना के बाद उसने वह पत्ता मृत ओझा के शरीर पर रख दिया। फिर दोनों टिव-टिव करते जंगल की ओर उड़ गए। उस जंगल में चहकते, गाते एक हज़ार तोते रहते थे। उनका संसार देवलोक सरीखा मनोहर और सुखों से भरापूरा था।

उस जंगल के पास नाशपाती का एक बग़ीचा था। तोते वहाँ जाते और जी भरकर नाशपातियाँ खाते थे। बगीचे का मालिक इससे बहुत परेशान था। एक दिन उसने तोतों को जाल में फँसाने का निश्चय किया। उसने एक रेशेदार पेड़ से जाल बुना और जाल को फैलाकर उस पर बहुत-सारी नाशपातियाँ बिखेर दीं।

अगली सुबह हज़ार तोतों का पूरा झुंड जाल में फँस गया। वे चीख़ने-चिल्लाने लगे, “हम फँस गए। हम अहेरी के हाथों में पड़ गए।” केवल ओझा तोता ही चुप था। वह आदमी था और कई चालें जानता था।

उसने तोतों की जबान में बाक़ी तोतों से कहा, “यों ऊपर-नीचे उड़ने से तो और ज़्यादा फँसोगे। अहेरी एक-एककर हम सबको मार डालेगा। अगर तुम अपनी जान बचाना चाहते हो तो जैसा मैं कहूँ वैसा करो!” बाक़ी तोतों ने कहा, “क्या-क्या? जल्दी बताओ!”

ओझा तोते ने कहा, “यह बहुत आसान है। जब अहेरी आए तो तुम सब मरने का स्वांग करना। वह समझेगा, ‘तोते तो मर गए!’ और एक-एक कर हमें फेंकेगा और गिनेगा, ‘एक, दो, तीन...’ उसके हज़ार तक गिनते ही हम एक साथ उड़ेंगे। अहेरी हाथ मलता रह जाएगा।” सब राज़ी हो गए।

अहेरी आया। तोतों को मरा हुआ देखकर उसे अचरज हुआ, “अजीब बात है! मैंने तो ज़हर वगैरा कुछ भी नहीं डाला!” उसे बहुत दुख हुआ, “ये खाने के काम के भी नहीं रहे। इन्हें खाकर मैं बीमार पड़ जाऊँगा। देखूँ तो सही, ये हैं कितने!” वह एक-एक को उठा-उठाकर फेंकने लगा। साथ ही वह गिनता जाता था, “एक, दो, तीन...”

वह लगभग अंत तक पहुँचा। बोला, “नौ सौ निन्यानवे!” और उसके बाएँ हाथ में पकड़ा चाकू खट से गिर पड़ा। बाक़ी नौ सौ निन्यानवे तोतों को चाल सिखाने वाला ओझा तोता ज़ोर से बोला, “एक हज़ार!” चाकू गिरने की ‘खट’ के साथ ‘एक हज़ार’ सुनते ही तोते फड़फड़ाहट की तेज़ आवाज़ के साथ उड़े और देखते-देखते आकाश में विलीन हो गए। लेकिन उन्हें चाल सिखने वाला ओझा तोता अहेरी के हाथ से छूट सका।

अहेरी चिढ़ गया, “बदमाश तोतों ने मुझे धोखा दिया! मैं इसे पकाऊँगा और इसकी हड्डियाँ तक चबा जाऊँगा। मैं इसकी गर्दन मरोड़ूँगा, एक-एक पर नोचूँगा, आंतें अलग करूँगा और इसका सालन बनाऊँगा।” पर जैसे ही उसने तोते की गर्दन पर हाथ रखा वह बोल पड़ा, “मुझे मत मारो! मुझे अपने घर ले चलो! अगर तुमने मेरी ठीक से सार-संभाल की तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूँगा। मुझे पकाने से एक कौर से ज़्यादा माँस तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा।”

अचरज से अहेरी की आँखें फैल गईं। बोला, “कैसा अजूबा है! आज तक मैंने ऐसा तोता नहीं देखा। यह आदमी की बोली बोलता है और वह भी एकदम साफ़! अब तो कोई मुझे एक हज़ार रूपए दे तब भी इसे मारूँ।” उसने तोते को चूमा, सहलाया और घर ले जाकर बीवी, बच्चों और माँ को दिखाया। तोता इतनी समझदारी की बातें करता था कि कोई सयाना भी क्या करेगा! कोटाओं के सातों गाँवों में ख़बर फैल गई कि नाशपाती के बग़ीचे के मालिक को ऐसा तोता मिला है जो जन्म-मरण, अकाल-बाढ़ हर चीज़ के बारे में बताता है। मायावी तोते को देखने के लिए लोगों का जमघट लग गया। चढ़ावे के अनाज और नारियलों का ढेर लग गया। जल्दी ही उसके घर में चढ़ावा रखने की ठौर नही बची। सचमुच वह मालामाल हो गया था।

कोटाओं में यह रिवाज है कि अंत्येष्टि के दिन वे दिन भर नाचते-गाते हैं, उस दिन वे जमकर अफ़ीम के पोस्ते चबाते हैं और उसकी पिनक में दिन-रात हँसते हैं और धमाल करते हैं। ऐसे ही एक दिन गाँव के मुखिया की पत्नी अफ़ीम की पिनक में चमत्कारिक तोते को देखने आई। वह आकर तोते के सामने खड़ी हो गई। एक पाँव सीढ़ी पर रखे होने से उसकी जाँघें उघड़ गईं। तोते ने उसे फटकारा, “तुम रंडी हो या सती? तुम औरत हो या मर्द?” मुखिया की पत्नी का पानी उतर गया। एक शब्द भी कहे बिना धीरे-धीरे चलती हुई वह वापस चली गई।

रात को वह घर गई और पति की चटाई के पास की चटाई पर लेट गई। पति भी अफ़ीम के नशे में था। जब वह उसकी ओर पलटा तो वह दूर खिसक गई। बोली, “अगर तुम मेरा दुख दूर नहीं कर सकते तो चुपचाप सो जाओ।” पति पूछा कि उसे क्या दुख है तो उसने कहा, “मुझे बोलने वाला तोता चाहिए। वह तोता तुम नहीं लाए तो तुम्हारी क़सम खाकर कहती हूँ, मैं जान दे दूँगी।” मुखिया ने कहा, “अगर वह हज़ार रूपए लेगा तब भी मैं तुम्हें वह तोता ला कर दूँगा। अब तो ख़ुश! आओ, मेरे पास आओ और मुझे अपनी बाहों में ले लो!” पत्नी ने उसे कसकर भींच लिया, यहाँ-वहाँ बेतहाशा चूमने लगी और उसे उठाकर अपने ऊपर लिटा लिया। दोनों एक-दूसरे में डूब गए।

मुखिया चरम पर पहुँचता उससे पहले ही पत्नी ने उसे अपनी जाँघों में जकड़ लिया। वह तृप्ति से वंचित रह गया। इस समय वह जो भी कहती वह दे देता। पत्नी ने कहा, “मेरी आँखें छूकर क़सम खाओ कि तुम मुझे बोलने वाला तोता लाकर दोगे। तभी मैं तुम्हें छोड़ूँगी।” मुखिया को एक-एक पल भारी हो रहा था। बोला, “मैं तुम्हें वह तोता लाकर दूँगा, चाहे मुझे उसके बदले में कई भैंसे ही क्यों देनी पड़े। अब मुझे छोड़ो और पूरा करने दो!” यह कह मुखिया ने पत्नी की आँखों को छूआ। पत्नी ने उसे ख़ुशी-ख़ुशी मुक्त कर दिया।

मुखिया की पत्नी को रात भर नींद नहीं आई। उसने पति को मुँह-अँधेरे जगाया और तोता लाने के लिए भेज दिया। तोते के मालिक से मुखिया ने कहा, “मेरा सर छूकर वचन दो!” मुखिया को वह नाराज़ नहीं करना चाहता था। सो उसने उसका सर छूकर वचन दे दिया। तब मुखिया ने उससे कहा, “मेरी भैंसे ले लो और अपना तोता मुझे दे दो! बोलो, कितने भैंसें लोगे?”

तोते के मालिक ने कहा, “मुझे पता नहीं था कि तुम्हारे मन में क्या है। मैं तोता नहीं दूँगा।”

“पर तुमने मेरा सर छूकर वचन दिया है!”

उनमें तकरार होने लगी। आख़िर गाँव के बड़ों ने उन्हें बुलाया। मुखिया ने कहा, “इसने मेरा सर छूकर वचन दिया और अब मुकर रहा है।” तोते के मालिक ने कहा, “हाँ, मैंने इसका सर छूकर वचन दिया, पर तब मुझे मालूम नहीं था कि इसके मन में क्या है।” बुज़ुर्गों ने कहा, “उससे क्या! सर छूकर वचन दिया है तो उसे पूरा करो! मुँह से दिए वचन की रक्षा के लिए अगर हमें अपनी माँ को भी बेचना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। तोता मुखिया को दे दो!”

पंचों के फैसले के आगे अहेरी को झुकना पड़ा। पाँच दुधारू भैंसों के बदले उसने तोता मुखिया को देना क़बूल कर लिया। अहेरी मुखिया को तोता देने लगा तो तोते ने कहा, “स्वामी, वह औरत बेशरमी से अपनी जाँघें दिखा रही थी। इस पर मैंने उसे डाँटा। इसीलिए वह मुझे हासिल करना चाहती है। वह मुझे मार डालेगी। मुझे अपने से दूर करने से पहले मेरा एक पंख तोड़कर अपनी अंगरखी की जेब में रख लो। तब मैं मरूँगा नहीं। तुम्हारी जेब में मैं फिर ज़िंदा हो जाऊँगा।”

अहेरी ने तोते का एक पंख अपनी जेब में रखा और तोता मुखिया को दे दिया। मुखिया बुद्धिमान तोते को बहुत पसंद करता था। वह उसे घर ले गया और पत्नी से कहा, “इसके लिए मैंने पाँच दुधारू भैंसें दी हैं। यह बहुत अक़्लमंद तोता है। इसकी अच्छी तरह सार-संभाल करना।” पत्नी ने कहा, “यह कोई कहने की बात है! तुम इसके लिए एक पिंजरा बनवा दो!” जो मुखिया ने बनवा दिया।

मुखिया की पत्नी ने तोते को पिंजरे में डाला और उसे अपने सामने लटकाकर कहा, “बेवक़ूफ़ तोते! तुमने मेरी बेइज़्ज़ती की! मुझे फटकारा! मैं रोज़ तुम्हें यह सूई चुभाऊँगी।”

मुखिया की पत्नी ने उसे पति के सामने दाना चुगाया और उसके साथ अच्छा बरताव किया, पर पति के घर से जाते ही वह सिलाई की लंबी सूई उसे चुभाने लगी। बेचारा तोता चीख़ उठा।

शाम को मुखिया घर आया तो तोते ने उससे शिकायत की, “बापू, आपकी पत्नी ने मेरी पिछाड़ी में लंबी सूई चुभाई।” मुखिया ने पत्नी को बुलाकर पूछा तो उसने कहा, “तुम भी इस मूर्ख तोते की बातों में गए?” तोते ने कहा, “परसों यह अफ़ीम के नशे में धुत्त होकर मेरे पास आई और अपनी जाँघें दिखाईं। इसलिए मैंने इसे फटकारा। इसीलिए यह मेरे साथ ऐसा बरताव करती है।” मुखिया को बात ठीक से समझ में नहीं आई। उसने पत्नी से कहा, “इसे चुग्गा-पानी दो और इसकी ठीक से देखभाल करो!” और किसी काम से बाहर चला गया।

मुखिया की पत्नी ने लंबी सूई तोते की पसलियों में पूरी घोंप दी। तोता तुरंत मर गया, पर अहेरी की जेब में रखे पंख में वह फिर जी उठा।

थोड़ी देर बाद पिंजरे में तोते का शरीर गंधाने लगा। पत्नी ने मुखिया को बताया कि तोता मर गया और बदबू दे रहा है। मुखिया ने उसे पिंजरे से निकाला और घूरे पर फेंक आया। सोचने लगा, “इस औरत का कहा मानकर मैंने पाँच दुधारू भैंसें गँवा दीं।” उसकी पत्नी ने सोचा, “पाँच भैंसें गई सो कोई बात नहीं, मैंने निगोड़े से छुट्टी तो पा ली!”

उधर अहेरी की जेब के पंख ने उससे कहा, “बापू, छोटी पहाड़ी पर अमरूद के पेड़ के नीचे एक शव रखा है। उसके चेहरे पर इस पंख को फिराओ, तुम्हें अच्छा तमाशा देखने को मिलेगा।”

अहेरी ने सोचा कि वहाँ निश्चित ही उसे अजूबा देखने को मिलेगा। पर आज देर हो गई है, सो कल सुबह जाएगा।

उस रात कोटाओं के गाँव में किसी वृद्ध को एक सपना आया। सपने में किसी ने उससे कहा, “पिछले पाँच-छह महीने हम शांति से रहे। काले कुरुंबा ओझा ने हमें तंग नहीं किया। उसके प्राण एक अहेरी की जेब में रखे पंख में हैं। अहेरी कल मृत ओझा के चेहरे पर पंख फिराएगा। उससे ओझा फिर ज़िंदा हो जाएगा और हमारे लिए मुसीबतें खड़ी करेगा, जैसे कि पहले करता था। उठो, तुरंत निकल पड़ो और अहेरी की जेब में रखे पंख को गाँव के चौक में दस गट्ठर लकड़ियों के साथ जला दो! नहीं तो हम लोग शांति से नहीं जी सकेंगे। पहले की तरह हमारी जान सांसत में फँसी रहेगी।”

वृद्ध एकदम उठ बैठा और पत्नी से दीया जलाने को कहा। सपना आने पर दीया जलाकर दूसरों को कहना चाहिए, ऐसी कोटाओं में प्रथा है। वृद्ध ने कुछ आदमियों को बुलवाया और उस अहेरी का पता लगाने को कहा जिसकी जेब में पंख है। वे जानते थे कि वह कौन है। उन्होंने उसे जगाया और उस पहाड़ी पर चलने को कहा जहाँ शव पड़ा था। पर पहले उन्होंने उसे पंख दिखाने के लिए कहा। अहेरी ने उन्हें पंख दिखाया। पंख ने कहा, “पहाड़ी पर अमरूद के पेड़ के नीचे एक शव रखा है। मुझे वहाँ ले जाओ और शव के चेहरे पर फिराओ। तुम्हें अच्छा तमाशा देखने को मिलेगा।”

पंख को बोलते सुनकर उन्होंने कहा, “बूढ़े का सपना बिलकुल सच था। सपने में हमारे देवता ने उससे बात की। देवता ने यह भी कहा था, ‘दस गट्ठर लकड़ियाँ जुटाओ, उनमें घास-फूस रखो और आग लगाकर पंख को जला दो!” और उन्होंने ऐसा ही किया।

लपटें ऊपर उठीं। लकड़ियों के बीच में रखे पंख ने जलते हुए चीत्कार किया, “बापू! माँ! मैं जल रहा हूँ।” फिर उसने जलते शव की तरह फुफकार भरी और मर गया। सब आग के चारों ओर नाचने लगे। सुबह वे पहाड़ी पर गए। वहाँ उन्होंने अमरूद की जड़ों के पास ओझा का शव पड़ा देखा। शव बिलकुल ताज़ा था। मानो वह आज ही मरा हो।

लोगों ने एक-दूसरे से कहा, “दुष्ट ओझा मर गया। अब वह हमें और परेशान नहीं करेगा।” उसके शव को उन्होंने एक बड़े गड्ढे में फेंक दिया। उसके बाद वे ख़ुशहाल हो गए और बिना किसी डर के सुख से रहने लगे।

कुछ महीने उपरांत उन्हें पता चला कि कुरुंबा ओझा की पत्नी उसके लौटने का इंतज़ार करती रही थी। जब उसका पति छह महीने बीत जाने पर भी वापस नहीं आया तो उसका माथा ठनका। कुछ ही दिनों में वह सूखकर काँटा हो गई और मर गई।

लोगों ने कहा, “अहेरी भला आदमी है। तभी देवता ने उसे बताया कि कुरूंबा ओझा तोता बनेगा और उसके निमित उसे अनाज और भैंसें मिलेंगी।” उनकी ख़ुशहाली दिनोंदिन बढ़ती गई। उस तोते की कहानी यहीं ख़त्म होती है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 336)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

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